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________________ शब्दार्थ * नो० नहीं ई० ईर्यापथिक क० करे सं० सांपरायिक क. करे से० वह के० कैसे गो० गौतम ज०जीन के कोक्रोध मा० मान मा० माया लो० लोभ बो क्षीण हुवे भ० हैं त. उन को ई० ईर्यापथिक क. करे ज० जिस को क्रोध मा. मान मा० माया लो लोभ अ. क्षीण नहीं होवे भ० हैं त. उस को सं०१२ सांपरायिक क. करे अ० यथा मूत्र रि० चलतेको ई० ईर्यापथिक उ० विपरीत रि०चलते को सं० सांपरा-७ याकिरिया कजइ ? गोयमा ! नो ईरियावहिया किरिया कजइ संपराइया किरिया कज्जइ ॥ से केणटेणं ? गोयमा ! जस्सणं कोहमाणमायालोमा वोच्छिण्णा भवंति तस्सणं ईरियारहिया किरिया कज्जइ, जस्सणं कोहमाणमायालाभा अवोच्छिण्णा भवंति तस्सणं संपराइया किरिया कज्जइ, अहासुत्तं रियमाणस्स ईरियावहिया किरिया कजइ, भावार्थ को सांपरायिक क्रिया लगती है परंतु ईर्यापथिक क्रिया नहीं लगती है. अहो भगवन् ! किस कारन से उन को ईर्यापथिक क्रिया नहीं लगती है व सांपरायिक क्रिया लगती है ? अहो गौतम ! जिन को क्रोध मान, माया, व लोभ का क्षय होवे उन को ईर्यापथिक क्रिया लगती है क्यों कि अकषायी होने से उनको उक्त क्रिया कर्मबंध के कारणभून नहीं होती है. और जिन को क्रोध, मान माया व लोभ का उदय होता है। रहे उन को सांपरायिक क्रिया लगती है. सूत्रानुसार चलने से ईर्यापथिक क्रिया लगवी है और सूत्र ते पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 88 सातवा शतकका पहिला उद्दशा- 880 !
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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