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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ |
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
फु०
स्पर्शे ॥ १० ॥ अ०
अनगार भं० भगवन् अ० उपयोग रहित ग० जावा चि० खड़ा रहता णि० बैठता अ० उपयोग रहित व वस्त्र प० पात्र कं० कंवल पा० रजाहेरण गे० लेता नि० मूकता त० उस को मं० भगवन् किं क्या ई० ईर्यापथिक क्रिया क० करे सं० सॉपरायिक क्रिया क० करे गो० गौतम दुक्खणं. फुडे, दुक्खी दुक्खं परियाइयइ, दुक्खी दुक्खं उदीरेइ, दुक्खी दुक्खं वेएइ, दुक्खी दुक्खं निज्जरेइ ॥ १० ॥ अणगाररसणं भंते ! अणाउन्तं गच्छमाणस्सवा चिट्ठमाणरसवा णिसीयमाणस्सवा, अणाउत्तं वत्थपरिग्गहं कंबलं पायपुंच्छणं गेहमाणस्वा, निक्खिमाणरसवा, तस्सणं भंते! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइ - स्पर्शता है अथवा अदुःखी नारकी दुःख से स्पर्शता है ? अहो गौतम ! दुःखी नारकी दुःख से स्पर्शस { है परंतु अदुःखी नारकी दुःख से नहीं स्पर्शता है. जैसे नारकी का कहा वैसे ही वैमानिक तक सब दंडक का जानना. जैसे कर्म सहित जीव कर्म से स्पर्शता है ऐसा जो कहा वैसे ही कर्म सहित कर्म का निधत्ताद बंध करता है, कर्म को उदीरता है, कर्म को वेदता है, और कर्म को निर्जरता है. ऐसे पांच दंडक चौबीस ही दंडक पर उतारना ॥ १० ॥ दुःख क्रिया से होता है इसलिये क्रिया का प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! विना उपयोग से चलनेवाले, खडे रहनेवाले, शयन करनेवाले व वस्त्र पात्र कम्बल रजोहरणादि ग्रहण करने वाले अनगार को क्या सांपरायिक क्रिया लगती है या ईर्यापथिक क्रिया लगती है ? अहो गौतम ! म
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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