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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
१० अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भगवन् नि० इन्धन रहित से अ० कर्म रहित की गति गो० गौतम ज० जैसे घू० धूम्र इ० इन्धन से वि० छूटा हुवा उ० ऊर्ध्व वी० स्वभाव से नि० निर्व्याघात से ग० गति भ० होती है ए० ऐसे गो० गौतम क० कैसे भं भगवन् पु० पूर्व प्रयोग से अ० अकर्म की ग गति गो० गौतम ज० जैसे कं० वाण की को० धनुष्य से वि० छुटा हुवा ल० लक्ष्याभिमुख नि० निर्व्याघात से ग० गति प० होती है ए० ऐसे पु० पूर्ण सिंबलिसिंबलियाइवा, एरंडमिंजियाइवा, उण्हेदिण्णा सुक्कासमाणी फुडित्ताणं एगंतमंतंगच्छइ ॥ एवं खलु गोयमा ! कहणं भंते ! निरिंधणयाए अकम्मस्सगई? गोयमा ! से जहानामए धूमस्स इंधण विप्पमुकस्स उडूंवीससाए निव्वाघाएणं गई पवत्तइ ॥ एवं खलु गोयमा ! कहणं भंते ! पुत्रप्पओगेणं अकम्मस्स गईपण्णत्ता ? गोयमा ! से जहानामए कंडस्स कोदंडविप्पमुक्कस्स लक्खाभिमुहं निव्वाघाएणं गई पवत्तइ ॥ को धूप में रखकर सुकाने में आवे तब उनफलीयों का मुख सुकते ही फटकर उस में से दाने बाहिर नीकलते { हैं ऐसे ही कर्मबंध का छेद होते ही जीव मुक्त होता है. अहां भगवन् ! कर्मरूप इन्धन नहीं होने से कर्म (रात जीव की कैसे गति होती है ? अहो गौतम ! जैसे इन्धन से नीकलता हुवा धूम्र स्वभाव से ही निर्व्याघातपने ऊंचे जाता है ऐसे ही अहो गौतम ! कर्मरूप इन्धन नहीं होने से अकर्म जीव की गाते होती है. अहो भगवन् ! पूर्व प्रयोग से कर्म रहित जीव की कैसे गति होती है ? अहो गौतम !
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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