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शब्दार्थ पीतष्ठान भ० होता है . है० हां भ० होता है ए० ऐसे ख. निश्चय गो० गौतम नि० संगरहित नि० मोहन
रहित ग० गति परिणाम से अ० कर्म रहित की ग० गति प० जानी जाती है. क० कैसे भ० भगवन् ! Vवं. बंध छेद से अ० कर्म रहित की गः गति ५० प्ररूपी से० अथ ज० जैसे क ० कल की फली, मु.।
मुंगकी फली, मा० उडिद की फली सिं० सेवले की फली ए. एरंड के बोंदे उ० ऊष्णता में दि० र हुचे सु. शुष्क होते फु० फूटकर ए. एकान्त स्थान में ग० जाते हैं ए. ऐसे गो० गौतम क • कैसे भं० ।
तेसिं अटूण्हं मट्टियालेवाणं परिक्खएणं धराणितल मइवइत्ता उप्पि सलिलपइट्ठाणे । भवइ ? हंता भवइ, एवंखलु गोयमा ! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ कहणं भंते ! बंधणच्छेयणयाए अकम्मस्स गई षण्णत्ता ?
गोयमा ! से जहानामए कलसिंबलियाइवा, मुग्गसिंबलियाइवा, माससिंबलियाइवा, भावार्थ भारी होने से समुद्र में पानी की नीचे बैठता है. अब उप्त तुम्बे के आठ लेयों पानी के प्रयोग से गला
जावे और उस से नीकल जावे तो क्या वह उपर आता है ? हां भगवन् ! तुम्बा पानी की उपर |
जाता है. वैसे ही संग नहीं होने से मोह नहीं होने से व गति परिणाम से कर्म रहित जीव की ग कही है. अहो भगवन् ! बंध का छेद करने से कर्म रहित जीव की कैसे गति होती है ? अहो गौतम ! |
कल नामक धान्य की फली, मुंग की फली, उडिद की फली, सेवले की फली व एरंड के
पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति ( भगवती ) सूत्र 488
सातवा शक का पाहला उद्देशा
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