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शब्दार्थ |
भावार्थ
<१०३ अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उ० उपजावे स० समाधि करने से ता० उतही स० समाधि को प० प्राप्तकरे भ० भगवन् त० तथारूप स० श्रमण को जा०यावत् प० देता किं० क्या च दु दु:त्याग च० त्यजे दु० दुष्कर क० करे दु० दुर्लभ ल० प्राप्त करे वो० (सि० सीझे जा० यावत् अ० अंत क० करे ॥ ८ ॥ अ० है भं० भगवन् अ० अकर्मवाले को ग० गति
॥ ७ ॥ स० श्रमणोपासक त्यजे जी० जीवित च० त्यजे बोधि बु० जाने त०
पीछे
समणस्सवा' माहणरसवा, समाहिं उप्पाएइ, समाहि कारएणं तामेव समाहिं पडिलभइ ॥ ७ ॥ समणोत्रासएणं भंते ! तहारूवं समणंवा जाव पडिलाभेमाणे किं चयइ ? गोमा ! जीवियं चयइ, दुच्चयं चयइ, दुक्करं करेइ, दुलहं लहइ, बोहिं बुज्झइ, तओ पच्छा सिज्झइ जाव अंत करेइ ||८|| अत्थिणं भंते ! अकम्पस्स गई पण्णायइ
उन को समाधि उत्पन्न करता हुवा स्वयंही वैसाही समाधि प्राप्त कर सकता है. ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! | तथारूप श्रमण साहण को अशनादि देते हुवे किस का त्याग करे ? अहो गौतम ! कर्म की दीर्घस्थितिरूप जीवित व कर्म द्रव्य का संचय का त्याग करे. कठिनतासे करने योग्य ऐसा जो अपूर्व करण उस से ग्रान्येनद करे, अनिवृत्ति करण की प्राप्ति दुर्लभ है उसे प्राप्त करे, सम्यक्त्वरूप बोधि को जाने, 'फोर सीझे बुझे व सब दुःखों का अंत करें ८ ॥ सब दुःख का अंत करने वाला मुक्ति में जाता
॥
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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