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________________ maramanan शब्दार्थईस० श्रमणोपासक भ० भगवन् त० तथारूप स० श्रमण मा० माहण फा० फाशुक ए० शुद्ध अॅ० अंशन है। पा० पान खा. खादिम सा० स्वादिम प० देता किं० क्या ल० प्राप्त करे गो० गौतम स० श्रमणोपासक त तथारूप स. श्रमण को जा. यावत् प० देता त० तथारूप स- श्रमण मा० माहण को स० समाधि or ८६७ समणोवासयस्सणं भंते ! पुवामेव वणप्फइ समारंभे पञ्चक्खाए सेय पुढवि खणमाणे अण्णयरस्स रुक्खस्स मूलं छिंदेजा, सेणं भंते ! वयं अतिचरति ? णो इण? समढे, नो खलु से तस्स अइवायाए आउदृइ ॥ ६ ॥ समणोवासएणं भंते ! तहारूवं समणंवा माहणंवा फासुएसणिजेणं असणपाण खाइम साइमेणं पडिलाभेमाणे किं लभइ ? गोयमा समणोवासएणं तहारूवं समणं वा जाव पडिलाभेमाणे तहारूवस्स वनस्पति काया का समारंभ करने का प्रत्याख्यान पहिले से ही है परंतु पृथ्वीकाय के सभारंभ का प्रत्याख्यान नहीं हैं. अब पृथ्वीकायको खोदते हुवे वृक्षका मूल छेदानावे तो क्या उनको व्रतभंग होवे?अहो गौतम! यह अर्थ योग्य नहीं है. क्योंकी वनस्पति की हिंसामें उनका संकल्प नहीं है.॥६॥अहो भगवन्! श्रमणोपासक तथारूप श्रमणको फामुक एषणिक आहार, पान, खादिम व स्वादिम देते हुवे क्या प्राप्त करे ? अहो गौतम ! श्रमणो. पासक तथारूप श्रमण माहण को अशनादि देते हुवे को समाधि ( मुख ) उत्पन्न करे. और इस तरह है। 48 पंचमांग विवाह पण्णचि ( भगवती.) सूत्र 28488 साता शतकका पहिला उद्देशा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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