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शब्दार्थ १० अंतकरे ॥ ३ ॥ स० श्रमणोपासक को भं० भगवन् सा• सामायिक का कियेहुवे स० श्रमणोपाश्रय में
० अ० रहेहुवे त° उस को भ० भगवन् किं. क्या इ० ईर्यापथिक् क्रिया क० करे सं० सांपयिक क्रिया क० करे गो० गौतम नो० नहीं इ० ईर्यापथिक क० करे सं० सांपरायिक क० करे से० वह के० कैसे
८६५ जा. यावत् सं० सांपरायिक गो० गौनम स० श्रमणोपासक सा० सामायिक क० करे हुवे स० श्रमणों कपाश्रय में अ० रहेहुवे आआत्मा अ.अधिकरणि की भ० होवे आ आस्मा अ० अधिकरण व प्रत्ययिक
भंते ! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अत्थमाणस्स, तस्सणं भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कज्जइ संपराइया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! नो ईरियावहिया किरिया कजइ से संपराइया किरिया कज्जइ ॥ से केणटेणं जाव संपराइया ? गोयमा ! समणोवास..
यस्सणं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अत्थमाणस्स आया अहिगरणी भवइ, आअंत करते हैं. ॥ ३॥ अहो भगवन् ! साधु के संसर्ग में रहनेवाला सामायिक व्रत सहित श्रमणो. पासक को क्या ई-पथिक क्रिया लगती है या सांपरायिक क्रिया लगती है ? अहों गौतम ! उपाश्रय में}ge
बैठा हुआ सामायिक व्रत युक्त श्रावक को ईर्यापथिक क्रिया नहीं लगती है परंतु सांपरायिक क्रिया है लगती है. अहो भगवन् ! किस कारन से सामायिक व्रत युक्त श्रमणोपासक को सांपरायिक क्रिया | लगती है ? अहो गौतम ! सामायिक व्रत युक्त श्रमणोपासक की आत्मा अधिकरण की होती है. इस तरह ।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 338.
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3387> सातवा शतक का पहिला उद्देशा
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