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शब्दार्थ तीसरे स० समय में सि० कदाचित् आ० आहारिक सि. कदाचित् अ० अनाहारिक च० चौथे स०समय
में नि० निश्चय आ० आहारिक ए. ऐसे दे० दंडक जी० जीव ए. एकेन्द्रिय च० चौथे स. समय में से० शेष त तीपरे स० समय में ॥॥ जी जीव भ० भगवन् कं. किस स समय में स० सर्व मे थोडा आ० आहारिक भा होवे गो० गौतम ५० प्रथम समय में उ० उत्पन्न होते च० चरिम समय में भ. भवस्थ ए. यहां जी जीव स० सर्व से अ० अल्प आ० आहारिक भ० होवे दं० दंडक भा०
सिय अणाहारए, चउत्थे समए नियमा आहारए, एवं दंडओ जीवाय एगिदियाय चउत्थे समए, सेसा तइए समए ॥१॥ जीवेणं भंते ! के समयं सवप्पाहारए
भवइ ? गोयमा ! पढम समयोववण्णए वा चरिम समय भवत्थे वा, एत्थणं जीवे भावार्थ उत्पन्न होता है तब तीन समय तक जीव अनाहारक रहता है, और चतुर्थ समय में जीव निश्चय ही
आहारक बनता है. ऐसेही सब दंडक वाले जीव तीन समय में आहाराक निश्चय ही होवे मात्र समुच्चय जीव
व एकेन्द्रिय चतुर्थ समय में आहारक होवे ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! किस समय में जीव अल्प आहार करने 0 1603नाला होता है ? अहो गौतम! उत्पत्ति होने के प्रथम समय में शरीर छोटा होने से जीव अल्पाहारी होता है।
और शरीर छोडने के अन्तिम समय में प्रदेशों का संहारन होने से शरीर छोटा होता है इसलिये अल्पाहारी, होता है. · इन दोनों समय में जीव अल्प आहारी रहता है. ऐसे ही वैमानिक तक
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र ka
सातवा शतक का पहिला उद्देशा 8
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