SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 892
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ) सूत्र भावार्थ ॐ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *-- जीव समय भ० होवे गो० गौतम प० प्रथम स० समय में सि० कदाचित् आ० आहारिक सि० कदाचित् अ० अनाहा(रिक बि० दूसरे स० समय में सि० कदाचित् आ० आहारिक सिं० कदाचित् अ० अनाहारिक त भंते ! कं समय मणाहारए भवइ ? गोयमा ! पढमे समये सिय आहारए सिय अणाहारए, चितिए समये सिय आहारए सिय अनाहारए, तइए समए सिय आहारए प्रथम समय में आहारक होता है और जब विग्रहगति से जाता है तत्र प्रथम समय में अनाहारक { होता है. क्योंकि उत्पत्ति स्थान को प्राप्त नहीं होने से वहां आहार योग्य पुगलों का अभाव है. दूसरे में जीव क्वचित् आहारक व क्वचित् अनाहारक होता है. जब एक वक्र गति से उत्पन्न होता है तब प्रथम समय में अनाहारक व दूसरे समय में आहारक होता है और जब दो वक्रगति से उत्पन्न होता है तब { प्रथम व दूसरे समय में अनाहारक व तीसरे समय में आहारक होता है. इस से दूसरे समय में जीव (क्वचित आहारक व क्वचित् अनाहारक होता है. तीसरे समय में भी जीव आहारक व अनाहारक होता है. जब दो वक्र से जीव उत्पन्न होता है तब तीसरे समय में आहारक होता है और तीन वर्क से जब १ त्रस नाडी से बाहिर अधोलोक की विदिशी में रहा हुवा कोई जीव चवकर ऊर्ध्व लोक में उत्पन्न होने वाला होवे तो वह जीव एक समय में विषम श्रेणि से समश्रेणि पर जावे दूसरे समय में बस नाडी में प्रवेश करे तीसरे एय में ऊर्ध्व लोक में गमन करे और चतुर्थ समय में त्रस नाडी बाहिर नीकल कर उत्पत्ति स्थान में उत्पन्न होकर आहार करता है. ( * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * ८६२
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy