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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
4848 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
॥ सप्तम शतकम् ॥
अ० असंवृत अ० अन्यतीर्थिक ८० दश स० सातवे स०
आ० आहार ०ि विरति था० स्थावर जी० जीव प० पक्षी आ० आयुष्य अ अनगार छ छद्मस्थ शतक में ते० उस काल ते उस समय ( में जा० यावत् ए० ऐसा व० बोले जी० जीव भ० भगवन् कं० किंस स० समय में अ० अनाहारिक आहार विरति थावर, जीव पक्खीय आउ अणगारे ॥ छउमत्थासंवुड अण्णउत्थि दस सत्तमंमि सए तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव
एवं वयासी जीवेणं
छठे उदेशे में जीवादि पदार्थ की व्यक्तव्यता कही सातवेंमें भी उसका विशेष स्वरूप कहते हैं सातवे शतक में दश उद्देशे कहे हैं जिनके नाम १ आहारक व अनाहारक विचार २ प्रत्याख्यान विचार, ३ वनस्पति वि चार, ४ संसारी जीव का, ५ पक्षी की योनिका, ६ आयुष्य का ७ अनगार का ८ छद्मस्थ मनुष्य का ९ असंवरी अनगार का और १० अन्य तीर्थिक का विचार उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवन्त महावीर (स्वामी से श्री गौतम स्वामीने प्रश्न किया कि अहो भगवन् ! परभव जाता हुवा जीव किस समय में { अनाहारक होता है ? अहो गौतप ! जीव काचित् प्रथम समय में आहारक होता है और क्वचित् अनाहारक होता है. जब जीव ऋजुगातसे उत्पात्ते स्थान में जाता है तब परभव के आयुष्य वाला
48484 सातवा शतक का पहिला उद्देशा 0808502
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