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सूत्र
भावार्थ
4948 पंचांग विवाह पष्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
(आ कहता हूं जा० यावत् ५० प्ररूपता अ० कितनेक पा० प्राण भू० भूत जी० जीव स० सत्व ए० एकान्त दुः दुःख वे० वेदना वे वेदते हैं आ० अथवा सा० साता अ० कितनेक ए० एकान्त सा० भवसिद्धिए सिय नेरइए सिय अनेरइए, नेरइए सिय भवसिद्धिए सिय अभवसिद्धिए ॥ एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं ॥ ६ ॥ अण्णउत्थियाणं भंते । एवं माइक्रांति जाव परूवंति एवं खलु सव्वपाणा भूया जीवा संत्ता एगंत दुखं वेयण वेयंति से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! जण ते अण्णउत्थिया जात्र मिच्छंते, एव माहंसु । अहं पुण गोयमा ! एव माइक्खामि जाव परूवेोमे अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एतदुक्खं वेणं वेयंति । आहच सायं वेयणं वैयंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा कहता हूं यावत् प्ररूपता हूं कि कितनेक प्राण भूत जीव व सख एकान्त दुःखवाली वेदना वेदते हैं और कदाचित् साता वेदना भी वेदते हैं, कितनेक प्राणादि एकान्त साता वेदना वेदते हैं और कदाचित असा - ता वेदना भी वेदते हैं. और कितनेक प्राण भूत, जीव व सख मर्यादा रहित वेदना वेदते हैं तो क्वचित् साता असाता दोनों वेदते हैं. अहो भगवन् ! यह किस तरह ? अहो गौतम ! नारकी एकान्त दुःख मय वेदना वेदते हैं परंतु क्वचित् यम के वियोग से अथवा तीर्थकरादिक के जन्म में साता वेदना वेदते हैं.
ऐसे ही भुवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक ये चारों प्रकार के देव एकान्त साता वेदना वेदते हैं,
** छठा शतकका दशवा उद्देशा
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