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________________ शब्दार्थ | * { कहते हैं जा • यावत् १० प्ररूपते हैं स० सर्व पा० प्राण भू० भूत जी० जीव स० सत्य ए० एकान्त दु० (दुःख वं० वेदना वे० वेदते हैं से ० वह क० कैसा मं० भगवन् ए० ऐसा गो० गौतम ज० जो ते० वे अ० अन्य तीर्थिक जा० यावत् मि० मिथ्या ए० ऐसा आ० कहते हैं अ० मैं पु० फीर गो० गौतम ए० ऐसा सूत्र भावार्थ | 49 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी गोमा ! नेता नियमा जीवइ जीवइ पुण सिय नेरइए सिय अनेरइए एवं दंडओ नेयव्वो जव मणियाणं || ५ || भवसिद्धिएणं भंते ! नेरइए नेरइए भवसिद्धिए ? गोथमा ! वस्था में प्राण धारण नहीं करता है ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! जो प्राण धारण करता है वह क्या नारकी है अथवा जो नारकी है वह प्राण धारण करता है ? अक्षे गौतम ! जो नारकी है वह निश्चय ही प्राण धारण करता है और जो प्राण धारण करता 'वह क्वचित् नारकी है और क्वचित नारकी नहीं है. ऐसे ही वैमानिक तक सब दंडक का जानना ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! जो भव्य होते हैं वे क्या नारकी होते हैं। अथवा जो नारकी होते क्या. भव्य होते हैं ? अहो गौतम ! जो भव्य होते हैं वे नारकी होते हैं। {व नहीं भी होते हैं और जो नारकी होते हैं वे भी क्वचित् भव्य होते हैं और क्वचित् अभव्य होते हैं. ऐसे ही वैमानिक तक सब दंडक का जानना || ६ || अहो भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् मरूपते हैं कि सब प्राणभूत जीव व संस्व एकान्त दुःख वेदते हैं तो यह किस तरह है ? जो अन्यतीर्थिक ऐसा करते हैं वे मिथ्या ऐसा कहते हैं अर्थात् उन का कथन मिथ्या है, वे अहो गौतम ! | परंतु मैं ऐसा * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी # ८५६
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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