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शब्द
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ती) मूत्र 488
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दार्थक सुख दु० दुःख जा. यावत् उ० बताये से वह के० कैसे गो० गौतम अ० वह जं. जंबूद्वीप जा. यावत्
वि० विशेषाधिक प० परिधि ५० प्ररूपी दे० देव म० महर्दिक जा० यावत् म० महानुभाग ए० एक म०% वडा स० विलेपन सहित ग• गंधका मु० डबा ग० लेकर तं० उसको अ. उघाडकर जा. यावत् इ०१ ऐसा क० करके के. संपूर्ण जं० जंबूद्वीप को ति० तीन अ० चिपटी से ति• इक्कीसवार अ० पर्यटणा करके ह. शीघ्र आ. आवे से वह नू निश्चय गो० गौतम से. वह के० केवलकल जं. जम्बूद्वीप ति. उस घा० घाणेन्द्रिय के पो० पुद्गल फु० स्पर्श है. हां फु० स्पर्श च. शक्तिवन्त गो गौतम के० कोई
उवदंसित्तए ॥ से केणटेणं ? गोयमा ! अयणं जंबूद्दीवेदीवे जाव विसेसाहिए परिहै खेवेणं पण्णत्ते, देवेणं महिट्ठीए जाव महाणुभागे एग महं सबिलेवणगंधसमुग्गमं ।
गहाय तं अवदालेइ अवदालेत्ता जाव इणामेवत्ति कह केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं
तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तखत्तो अणुपरियहित्ताणं हवमागच्छेजा ॥ सेणूणं ___गोयमा! से केवलकप्पे जंबूद्दीवेदीवे तिहिं घाणपोग्गलेहि फुडे, हंता फुडे । चक्कियाणं गोलम्मा चौडा है उस की परिधि ३१६ २२७ योजन से कच्छ विशेषकी है ऐसा जम्बूद्वीप को कोई महादक यावत् महानुभाग देव विलेपन वाला किसी सुगंधी पात्र को खुल्ले मुखसे हस्त में लेकर तीन चपटिका में इक्कीस वक्त संपूर्ण जम्बूद्वीप की आवर्तना करे. तब अहो गौतम ! क्या वह गंध संपूर्ण
48 छठा शतकका दशवा उद्देशा *
* पंचमांग
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