SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 882
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ मुख दु० दुःख जा. यावत् को० गुठली मात्र नि. वाल मात्र क० कलम मा० मात्रभी मा० उडद मा० मात्रभी मु० मुंगमात्र जू० यूकामात्र लिलिखमात्र अ० निकालकर उ० बताने को से० वह क. कैसे भं० भगवन् ए० ऐसा गो० गौतम ज० जो ते वे अ० अन्यर्थिक ए. ऐसा आ० कहते हैं जा यावत् मि० मिथ्या ते के ए. ऐसा आ० कहते हैं अ० मैं पु फीर गो० गौतम ए. ऐसा आ० कहता हूं जा. यावत् प० प्ररूपता हूं सः सर्व लोक में स० सर्व जीव नो० नहीं च० शक्तिवंत के० कोई सु० मायमवि, कलममायमवि, मासमायमवि, मुग्गमायमवि, जूयमायमवि, लिक्खमायमवि, अभिनिव्वदृत्ता उवदंसित्तए से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा ! जण्णं ते. अण्णउत्थिया एवं माइक्खंति जाव मिच्छं ते एव माहंसु । अहं पुण मोयमा ! एक माइक्खामि जाव परूवेमि सब्बलोए वियणं सव्वजीवाणं नो चकिया केइ सुहंवा तं चेत्र जाक भावार्थ कोई भी जीव बेर जितना, वाल जितना, मुंग, उडद, लींख वयूका जितनाभी सुख दुःख नीकालकर बतासकता नहीं है. अहो भगवन् ! उन का यह कथन किस तरह है ? अहो मौतम ! जो अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपते हैं वे मिथ्या ऐसा कहते हैं. मैं ऐसा कहता हूं यावत् मरूपता हूं कि संपूर्ण लोकमें किसी जीव को बेरकी गुठली जितना यावत् यूका जितना मुख दुःख नीकाल कर बताने को कोई 15 समर्थ नहीं है. अहो भगवन् ! यह किस तरह है ? अहो गौतम ! यह जम्बूद्वीप एक लक्ष. योजन. का 43 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक : *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy