________________
श
सूत्र
भावार्थ
- पंचमांग विवाह पण्णांत ( भगवती ) सूत्र
को नी० नीले पो० पुगलपने प० परिणमें ॥ ४ ॥ पूर्ववत् ॥ ५ ॥ पूर्ववत् ॥ ६ ॥ ९ ॥
कक्खड फास पोगलं, मउअ फास पोग्गलत्ताए एवं दो दो गरुअ लहुअ सीय उसिण णिडलुक्वण्णाई, सव्वत्थ परिणामेइ आलावगा य दो दो पोग्गले अपरियाइत्ता परियाइत्ता॥४॥ अविसुद्धले सेणं भंते! देवे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धले सं देवं देवं अण्णतरं जाणइ पासइ ? गोयमा ! णो णट्ठे समट्टे ॥ एवं अविसुद्ध लेस्से असमोहणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं अविसुद्धले से समोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्ध पांचरस के व आठ स्पर्श के दो २ भांगे ग्रहण करना. कर्कशको कोमलपने परिणमावे व कोमलको कर्कशपने परिणमावं गुरु को लघुपने परिणमावे लघुको गुरुपने परिणमात्रे शीत को ऊष्ण व ऊष्ण को शीतपने परिणमावे, स्निग्ध को रूक्षपने व रूक्ष को स्मिगधपने परिणमावे. बाहिर के {पुद्गलों ग्रहण किये बिना नहीं परिणमा सकता है, परंतु बाहिर के पुद्गलो ग्रहण कर परिणमा सकता है यह सब परिणमानेका अधिकार कहा ॥ ४ ॥ यह देवशक्ति कही अब देवशक्तिकी भिन्नता बतलाते हैं. ११ अविशुद्धलेशी देव, अमसवहतात्मदेव, और विशुद्धलेशी देवादिक इन तीन पद के १२ विकल्प कहते अहं भगवन् ! विभंगज्ञान वाले देव उपयोग रहित आत्मासे विभंग ज्ञानवंत देवता देवी व अन्य किसी को क्या ज्ञान से जान सकते हैं व दर्शन से देखसकते हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. ऐसे
4480 छठ्ठा शतक का नवत्रा उद्देशा
८४९