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शब्दार्था शुभनाम सु० शुभरूप मु० शुभगंध सु० शुभरस सु० शुभस्पर्श ए० इतने दी द्वीप स• समुद्र ना• नाम
y०प० प्ररूपे एक ऐसे ने० जानना मु० शमनाम उ० उद्धार १० परिणाम स० सर्व जीवों का से. ऐसे भ०० भगवन् छ० छठा शतक का अ० आठवा उ. उद्देशा स० समाप्त ॥ ६॥८॥ = मी० जीव भ. भगवन् ना० ज्ञानावरणीय क० कर्म बं० बांधते क० कितनी क० कर्मप्रकृति ब. सुभारसा, सुभाफासा, एवइयाणं दीव समुहा नामधेन्जेहिं पण्णत्ता, एवं नेयव्वा सुभानामा उद्धारो परिणामो सव्व जीवाणं सेवं भंते भंतेत्ति, ॥ छट्ठसयस्स , अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ६ ॥ ८ ॥ +
जीवेणं भंते ! नाणावरणिज कम्मं बंधमाणे कइ कम्मप्पगडीओ बंधइ ? गोयमा! , का स्वरूप बतानेवाला पालामें बालाग्र भरनेका जो दृष्टांत कहा उस पालें में से समय २ में एक २ खण्ड नीकालते उद्धापल्य होवे ऐसे दश क्रोडाक्रोड कुवा खाली होवे सव उद्धा सागरोपम होवे, ऐसे अढाइ सागरोपम के जितने समय होते हैं उतने ही द्वीप समुद्र होते हैं. इन में सब जीव अनेक वक्त उत्पन्न हुवा. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह छठा शतक का अठवा उद्देशा समाप्त हुवा ॥६॥
गत उद्देशे के अन्त में उत्पन्न होने का कहा. उत्पन्न होना कर्म से होता है इसलिये कर्मबन्ध का अअधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! जीव ज्ञानावरणीय कर्म बांधता हुवा कितनी कर्म प्रकृतियों का बंध
पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति ( भगवती ) सूत्र
छठा शतक का नवा उद्देशा 8
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भावाथे
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