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________________ ८४२ उयावि ॥ दंडओ जाव वेमाणियाण एवं एए दुवालस दंडगा भाणियव्वा ॥ ११ ॥ जीवाणं भते ! किं जाइ नाम निहत्ता, जाइनामनिहत्ताउया, जाइनामनिउत्ता, जाइनामनिउत्ताउया, जाइगोयनिहत्ता, जाइगोयनिहत्ताउया, जाइगोयनिउत्ता; जाइगोयनिउन्ताउया, जाइनामगोय निहत्ता, जाइनामगोयनिहत्ताउया जाइ. नामगोयनिउत्ता, जाइ नामगोय निउत्ताउया जाव अणुभाग नामगोय निउत्ताउया ? नाम का बंध किया उन्हे भी जाति नाम निधत कहना, अनेक जीवों के जाति नाम निधत्त समान गति स्थिति, अवगाहना, प्रदेश व अनुभाग का जानना. इस तरह एक जीव व अनेक जीव के बारह दंडक , चौवीस ही दंहक पर उतारना ॥११॥१. एक जीव सामान्य जातिका आयुष्य बंध करे २ वहुन जीवसामान्य जाति का आयुष्य बंध करे ३ एक जीव उत्तम जाति का आयुष्य बंध करे ४ बहुत जीव उत्तम जाति का आयुष्य बंध करे, ५ एक जीव जाति की साथ नीच गोत्र का आयुर्बध करे ६ बहुत जीव जाति की साथ * नीच गोत्र के आयुष्य का बंध करे ७ एक जीव जाति की साथ उच्च गोत्र के आयुष्य का बंध करे ८ बहुत जीव जाति की साथ उच्च गोत्र के आयुष्य का बंध करे ९ एक जीव जाति की साथ नीच नाम व गोत्र के आयुष्य का बंध करे १० बहुत जीव जाति की साथ नीच नाम व गोत्र के आयुष्य का वध कर 18११ एक जीव जाति की साथ उच्च नाम व गोत्र के आयुष्य का बंध करे १२ बहुत जीव जाति की साथ, अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋपिनी * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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