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शब्दार्थ
भावार्थ
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
निघत आ० आयुष्यबंध ॥ ११॥ पूर्ववत् ॥ २१-१२ ।। ल० लवण स. समुद्र कि क्या उ० ऊंचापानी
ओगाहणा नामनिहत्ताउए, पएसनामनिहत्ताउए, अणुभागनामानिहत्ताउए, दंडओ जाव वेमाणियाणं ॥ ११॥ जीवेणं भंते ! किं जाइनामनिहत्ता जाव अनुभाग नामनिहत्ता ? गोयमा ! जाइ नामनिहत्तावि जाव अणुभागनामनिहत्तावि, दंडओ जाव वेमाणियाणं । जीवाणं भंते ! किं जाइनाम निहत्ताउया जाव अणुभागनाम निहत्ताउया ? गोयमा ! जाइनामनिहत्ताउयावि जाव अणुभागनामनिहत्ताएक भव में रहने का काल का बंध सो स्थितिनामनिधत आयुष्य बंध ४ औदारिकादि शरीर प्रमाण का बंध सो अवगाहना नाम निघत आयुष्य बंध ५ आयुष्य कर्म के तथाविध प्रणित जो प्रदेश का बंध सो प्रदेश नाम निधत्त आयुष्य बंध, और ६ आयुष्य द्रव्य का विपाक सो अनुभाग नाम निधत आयुष्य ब. बंध. यह छमकार का आयुर्वेध चौवीस ही दंडक में पाता है. ॥ ११॥ अहो भगवन् ! एक जीवने एके-41 न्द्रियादि जातिका बंध किया उसे जाति नाम निधत्त क्या कहना ? अहो गौतम ! जिसने जातिनाम का बंध ! किया उसे जातिनामनिधस कहना. जातिनामनिधत्त जैसे गति, मिति, अवगाहना, प्रदेश व अनुभाग के छ दंडक जानना. अहो भगवन् ! अनेक जीवोंने जिस प्रकार एकेन्द्रियादि जाति | नाम का बंध किया उसे क्या जाति नाम निधत्त आयुष्य कहना ? अहो गौतम! अनेक जीवोंने जाति ।
छठा शतकका आठवा उद्देशा