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शब्दार्थ
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भावार्थ
49 अनुसादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
आयुष्य बंध १० प्ररूपा गो० गौतम छ० छ प्रकार का आ० आयुष्यबंध जा० जातिनाम निधत्त आ. आयुष्यबंध ग• गतिनाम निधत्त आ० आयुष्यबंध. ठि० स्थिनिनाम निधरा आ० आयुष्यबंध ओ० अवगाहन नाम निधत्त आ० आयुष्यबंध प० प्रदेश नाम निधत्त आ० आष्ययुबंध अ० अनुभाग नाम
अगणी पुढवीय अगणि पुढवीसु ॥ आउतेउ वणस्सइ, कप्पुवरंमि कण्हराईसु । ॥ १०॥ कइविहेणं भंते ! आउयबंधे पण्णत्ते ? गोयमा ! छविहे आउयबंधे
पण्णत्ते, तंजहा--जाइनाम निहत्ताउए, मतिनाम निहत्ताउए, ठिइनाम निहत्ताउए । में बादर अप्काय, बादर आग्निकाय व बादर वनस्पतिकाय, नहीं है. यह विशेषता है. नवौवेयक से ईषत् मारभार पृथ्वीतक वर्णन नहीं लिया है, परंतु इस का निषेध जानना.. तमस्काय वैसेही सौधर्मादि पांच देवलोक में अग्निकाय व पृथ्वीकाय का प्रश्न, सातों पृथ्वीयों में आनिकाय का प्रश्न, और उपर के देवलोक में अप्काय, तेउकाय व वनस्पतिकाय' का प्रश्न कहाँ है. ॥ १.० ॥ पृथिव्यादि जीव आयुष्य सहित होते है हैं इसलिये आयुष्य का प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! आयुष्य का बंध कितने प्रकार का कहा ? अहो गौतम ! आयुष्य का बंध छ प्रकार का कहा है. एकेन्द्रियादि पांच प्रकार के जातिरूप. नामकर्म की उत्तर
प्रकृति विशेष अथवा जीव परिणामकी साथ प्रतिसमय कर्म पुद्गलका अनुभव के लिये जो आयुष्य बांधनेमें * आवे सो जाति नाम निधत्त आयुष्य २ नरकादिगति का आयुष्यबंध करे सो गति नाम निधच आयुष्य ३
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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