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________________ शव्दाथ ८३६ 4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी भगवन् इ० इस र० रत्नप्रभा पु. पृथ्वी की अ० नीचे गा गृह स० सन्निवेश नो० नहीं इ० यह अ० अर्थ स० समर्थ ॥३॥ अ० है भ० भगवन् इ० इस र० रत्नप्रभा पु. पृथ्वी की अ० नीचे उ० उदार व० बद्दल सं० स्नेह उत्पन्न होवे स० पुद्गल होवे वा० वर्षा वा० वर्षे हं हां अ०है ति० तीनों प० करे, दे० देव प० करे अ० असुर ना० नाग कुमार ॥ ४ ॥ अ० हैं भं० भगवन् इ. इस र० रत्नप्रभा पु०१ पृथ्वीकी अ०नीचे बा०बादर थस्थनित शब्द हं हां अ०है ति तीनों प० करे ॥ ५ ॥ अ० है भं० भगवन् इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे गामाइवा, जाव सण्णिवेसाइवा ? नो इणद्वे समटे ॥ ३ ॥ अत्थिणं भंते ! इमीस रयणप्पभाए पुढवीए अहे उराला बलाहया संसेयंति समुच्छंति, वासं वासंति ? हंता अत्थि तिण्णिवि पकरेंति देवावि पकरेइ असुरोवि, नागोवि, ॥ ४ ॥ अत्थिणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बादरे थणियसद्दे ? हंता अत्थि तिण्णिवि पकरेंति ॥ ५ ॥ अत्थिणं भंते ! इमीसे रयणसन्निवेश क्या हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी की नीचे बडे बद्दल उत्पन्न होते हैं व वर्षा वर्षाते हैं ? हां गौतम अहो भगवन् ! वहां क्या देव, असुर व नाग वर्षाते हैं ? हां गौतय ! तीनों वर्षा वर्षाते हैं ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी नीचे क्या बादर स्थनित शब्द है ? हां गौतम ! इस रन्नप्रभा पृथ्वी नीचे बादर स्थनित शब्द है और उसे असुर, नाग व देव ऐसे तीनों जातिवाले करते हैं ॥ ५॥ अहो भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभा पृथ्वी *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालाप्रसादजी* भावार्थ |
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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