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________________ शब्दाथस० अथ ज. जैसे अ० मादल ए. ऐसे उ. उत्तरकर व वक्तव्यता ने जानना जा. यावत् आ०१ आस्वादे ती० उस स० समय भा० भरत वर्ष में त० वहां २ दे० देशविभाग में ब. बहुत उ० उदार को० कोद्रव जा० यावत् कु० कुश विकुश वि० विशुद्ध रु० वृक्षमूल जा० यावत् छ. छप्रकार के म० मनुष्य अ० अनुसक्तवंत तं. वह ज. यथा ५० पद्मगंधवाले मि० मृगगंध वाले अ० अममत्वी ते० तेजस्वी सं० समर्थ स० शनैः चलने वाले से वैसे भ० भगवन छ. छठा स० शतक का स० सातवा जहानामए आलिंगपुक्खरेइवा, एवं उत्तरकुरुवत्तव्वया नेयव्वा जाव आसयंति, सयंति ॥ तीसेणं समाए भारहवासे तत्थ २ देसे २ तहिं बहवे उद्दाला कोदाला जाव कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव छाव्वहा मणुस्सा अणुसाजज्झत्था तंजहा पम्हगंधा, मियगंधा, अममा, तेयली, सहा, सणिचारी सेवं भंते भंतेत्ति ॥ छट्ठसए भावार्थ वैसे ही भरतक्षेत्र का भूमिभाग था. उस स्थान में अनेक प्रकार के शाल क्रोद्रव के वृक्ष थे. उन के मूल कुश विकुशादि रहित थे और मूल स्कंध, शाखा, प्रतिशाखा, पत्र, पुष्प व फलादि से अत्यंत सुशोभित थे. उस में छ प्रकार के मनुष्य उत्पन्न हुवे. पद्म कमल जैसी गंधवाले, भृगमद जैसी गंधवाले, समकार रहित, तेजस्वी, समर्थ और मंदचालबाले. इस आरे का शेष वर्णन देवकुरु उत्तरकुरु जैसे जानना और अन्य आरों का विवरण जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति से जानना. अहो भगवन् ! .आपके वचन सत्य हैं ११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * anamand
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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