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शब्दार्थ) सहस्र का काल दु० दुषम दुषम पु० पुनरपि उ० उत्सर्पिणी का द० दश सा० सागरो पम को० क्रोडा क्रोड का का० काल उ० उत्सर्पिणी वी० बीस सा० सगारोपम को० क्रोडा क्रोड (का० काल ओ० अवसर्पिणी उ० उत्सर्पिणी ॥ ५ ॥ जं० जम्बूद्वीप में भं० भगवन् दी० द्वीप में इ० इस ओ : अवसर्पिणी में सु० सुषम सुषम स० समय में उ० उत्तमता प० प्राप्त भ० भरत वा० वर्ष के ० कैसा
सूत्र
भावार्थ ।
483 पंचांग विवाद पण्णत्त ( भगवती ) सूत्र
आ० आकार भाव प० प्रत्यवतार हो० था गो० गौतम व० बहुत स० सममणीय भू० भूमिभाग हो० था सागरोवम कोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा; दस सागरोवम कोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी, दस सागरोत्रम कोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवम कोडाकोडीओ कालोओसप्पिणीय उस्सप्पिणीय ॥ ५ ॥ जंबूद्दीवेणं भंते ! वे इसे उसप्पिणी सुसमसुसमाए समाए उत्तिमट्ठपत्ताए भरहस्स वासरसकेरिस आगारभाव पडोयारे होत्या ? गोयमा बहुसमरमणिजे भूमिभागे होत्था, से तरह दश क्रोडाक्रोड मागरोपम की अवसर्पिणी, दश क्रोडाक्रोड सागरोपम की उत्सर्पिणी. बीस क्रोडाक्रोड सागरोपम का एक काल चक्र. यह पल्य व सागर की उपमा का प्रमाण जानना ॥ ५ ॥ अहो भग वन् ! इस जम्बूद्वीप में प्रथम सुषमसुषम नामक समय में उत्कृष्ट आयुष्यादि प्राप्त होते भरतक्षेत्र का कैमा आकार भाव प्रत्यवतार था ? अहो गौतम ! जैसे मादल के उपर का चर्म बहुत सम होता है
- छठा शतक का सातवा उद्देशा
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