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शब्दार्थ पीछे जो० योनि वि० विध्वंम होवे ते० उस पीछे वी० बीज अ० अवीज भ० होवे ते. उस पीछे जो० ।
योनि का वी० विच्छेदपना प० प्ररूपा स० श्रमण ॥१॥ अ० अथ भ० भगवन् क० चने म० ममुर ति: तिल मु. मूंग मा० उडद नि० बाल कु० कुलथी आ. चवले सं० तुवर प. काले चने इ०इन ध० धान्या ।
को ज० जैसे सा० शाली का त० तैसे ए० ऐसे न० विशेष पं० पांच सं० संवत्सर से० शेष तं० वैसे 4 उक्कोस तिण्णि संवच्छराइं, तेणपरं जोणी प्रमिलायइ तेण परं जोणी विहंसइ, तेणं है परं बीए अबीए भवइ, तेण परं जोणी वोच्छेदे पन्नत्ते. समणाउसो ! ॥ १ ॥ अह है
भंते ! कलाव, मसूर, तिल, मुग्ग, मास, निप्फाव, कुलत्थ, आलिसंदग, संताणं है . पलिमंथगाईणं, एएसिणं धण्णाणं जहा सालीणं तहा एयाणिवि णवरं पंच संव
च्छराई सेसं तंचेव ॥ २ ॥ अह भंते ! अयास कुसंभग, कोदव, कगु, वरग,रालग, चारों तरफ से लीपे, अच्छी तरह ढके, मुद्रित करे, व रेखादिक के लक्षण करे तब उस की योनि । कितने काल तक रहती है, ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट तीन वर्ष तक रहे. फीर योनि
म्लान होती है, विध्वंस होती है और बीज अबीज होजाता है, और योनि का विच्छेद होजाता है। * ॥ १॥ अहो भगवन् ! चने, मसुर तिल, मुंग, उडद, वाल, कुलथी, चवले, तुवर व कालेचने इन
धान्यों को कोठे आदि में भरकर अच्छी तरह से लीपे यावत मदित करे तब कितना काल तक रहे ।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगाती ) सूत्र 1880
-g4छठा शतक का सातवां उद्देशा
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भावार्थ
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