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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
[ ॥ ४ ॥ पूर्ववत् से० वैसे ॐ० भगवन् छ० छठा स० शतक में छ० छठा उ० उद्देशा ॥ ६ ॥ ६ ॥ अ० अथ मं० भगवन् सा० शाल वी० त्रीहि गो० गेहुं ज० यत्र ज० जवार ए० इन ध० धान्य को को० कोठे में गुप्त प० बांस के टोपले में गुप्त मं० तृण के माले में उ० उपलिप्त लि० लिप्त पिढका हुवा मु० मुद्रित हुआ लं० लक्षित किया की के० कितना काल जो० योनि सं० रहती है गो० गौतम ज० जघन्य अं० अंत मुहूर्त उ० उत्कृष्ट ति० तीन सं० सवत्सर ते० उस पीछे जो० योनि प० म्लान होवे ते ० उस सेवं भते भत्ति पुढवि उद्देसओ सम्मत्तो ॥ छट्ठसए छट्टो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ६॥६॥
अह भंते ! सालीणं, वीहीणं, गोधूमाणं, जवाणं, जवजवाणं, एएसिणं धण्णाणं कोट्ठा उत्ताणं, पल्ला उत्ताणं, मंच उत्ताणं, मालाउत्ताणं, उलित्ताणं, लित्ताणं, पिहियाणं मुद्दियाणं, लछियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठइ ? गोयमा ! जहणणं अतोमुहुत्तं
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
खल रस पने परिणमाते हैं व शरीर बांधते हैं और कितनेक वहां से पीछे स्वशरीर में आकर दूसरी वक्त मारणा न्तिक समुद्धात करके वहां उत्पन्न होते हैं और फीर आहारादि करते हैं. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह छठा शतक का छठा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ६ ॥ ६ ॥
अहो भगवन् ! शाल, व्रीहि, गेहुं, यत्र व जवार इन धान्य को कोठा, पाला, मांचा, व माले में रखकर
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