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शब्दार्थ पीछे आ० आहारकरे १० परिणमावे स. शरीर बं० बांधे ज: जैसे पु० पूर्व में म मेरु प० पर्वत का आ०
आलापक भ० कहा ए० ऐसे दा० दक्षिण का प० पश्चिम का उ० उत्तर का उ० ऊर्थ अ० अधो ज. १९ जैसे पु० पृथ्वीकायिक त० तैसे ए० एकेन्द्रिय स० सब ए. एक का छ• छ आ० आलापक भा० कहना .
कस्स छ आलानया भाणियव्वा ॥ ४ ॥ जीवेणं भंते ! मारणंतिय समुग्धाएणं समोहए २ जे भविए असंखेजेसु बेइंदियावास सय सहस्सेसु अण्णयरंसि बेइंदिया वासंसि बेइंदियत्ताए उववाजित्तए, सेणं भंते ! तत्थगएचव जहा नेरइया एवं जाव १ अणुत्तरोववाइया ॥ जीवेणं भंते ! मारणंतिय समुग्धाएणं समोहए २ जेभविए पंच
अणुत्तरेसु महइ महालएसु महाविमाणेसु अण्णयरंसि अणुत्तरविमाणसि अणुत्तरोषवाइय ___ देवत्ताए उववाजत्तए सेणं भते! तत्थगए चेव जाव आहारेजवा परिणामेजवा सरीरंवा बंधेजा जैसे पूर्व दिशा का कहा वैसे ही दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध व अधो का जानना. पृथ्वीकाय के छ आलापक जैसे अप्, तेउ, वायु, व वनस्पति का जानना ॥ ४ ॥ तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, १० चाणव्यंतर ज्योतिषी, व वैमानिक का नारकी जैसे जानना. अहो भगवन्! जीव मारणान्तिक समुद्धात करके जो।
पांच अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने योग्य होता है वह वहां उत्पन्न होकर क्या आहार करते हैं, खल203 र सपने परिणमाते हैं व शरीर बांधते हैं ? अहो गौतम ! कितनेक जीव वहां आहार ग्रहण करते हैं
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
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छठा शतक का छठा उद्देशा
भावाथ
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