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शब्दार्थ की पु० पूर्व में के० कितना ग० जावे के कहां पा० प्राप्त होवे गो० गौतम लो० लोकान्त में ग. जावे लो०१41 ७ लोकान्त में पा. प्राप्त होवे अ० अंगुल का अ० असंख्यात भा. भागमात्र सं० संख्यात भा० भागमात्र वा० बालाग्र वा० प्रत्येक बालाग्र ए० ऐसे लि० लीख जू० यूका ज. यव अं० अंगूल जा० यावत् जो०११ भंते ! मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमेणं केवइयं गच्छज्जा केवइयं पाउणेज्जा ? गोयमा ! लोयंतं गच्छज्जा लोयंतं पाउणेजा ॥ सेणं भंते ! तत्थगए चेव आहारेजवा परिणामेजवा सरीरंवा बंधेजा ? गोयमा ! अत्थेगइए तत्थगएचेव आहारेजवा परिणामेजवा सरीरंवा बंधेजा, अत्थेगइए तओ पडिनियत्तइ २ त्त इह मागच्छइ मागच्छइत्ता दोचंपि मारणंतिय समुग्घाएणं समोहणइ मंदरस्स पव्वयस्स
पुराच्छमेणं अंगुलस्स असंखज्जभागमेत्तंवा, संखेजइ भागमेत्तंवा बालग्गंवा होता है ? अहो गौतम ! वह जीव मारणान्तिक समुद्धात करके लोकान्ततक जाता है और लोकान्त तक स्थिर होता है. अहो भगवन् ! क्या वे जीव वहां ही आहार करते हैं, परिणमाते हैं व शरीर बांधते हैं ? अहो गौतम ! कितनेक वहां ही आहार करते हैं, परिणमाते हैं व शरीर बांधते हैं और कितनेक वहां से पीछे अपने शरीर में आते हैं, और पुनः मारणान्तिक समुद्धात से मरकर मेरु पर्वत की पूर्व में अंगुल के असंख्यात भागमात्र, संख्यात भागमात्र, बालाग्र, प्रत्येक बालाग्र, ऐसेही लिंख, बूका,
पंचमाङ्ग विवाह पण्णाति (भगवती ) सूत्र
छठा शतकको छठा उद्देशा 988
भावा
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