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________________ शब्दार्थ Tags पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 8%80 गौतम अं० किननेक त० वहां रहे हुवे आ० आहारकरे ५० परिणमावे स० शरीर बं० बांधे अ० कितनेक त० वहां से प० पीछा फीरकर इ० यहां आ० आवे आ० आकर दो० दूसरीवार मा० मारणान्तिक स० १०० समुद्धात स. करे स० करके इ० इस र रत्नप्रभा पु०पृथ्वीके ती तीस नि० नरकावास सलक्ष अ० अन्य ने नारकीपमे उ० उत्पन्न होने को तः उस प० पीछे आ० आहारकरे ५० परिणमारे स० शरीर, बांधे ए ऐसे जा. यावत् अ० नीचे स० सातवी पु० पृथ्वी ॥ २ ॥ जी० जीव भ० भगवन् मा० __ बंधेज्जा, अत्थेगइए तत्थपडिनियत्तइ तओ पडिनियतित्ता इह मागच्छइ मागच्छइत्ता दोच्चपि मारणंतिय समुग्घाएणं समोहणइ समोहणइत्ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास सय सहस्ससु अण्णयरंसि निरयावासांसि जेरइयत्ताए उवरजित्तए॥ तओ पच्छा आहारेजवा परिणामेजवा सरीरं वा बंधेजा, एवं जाव अहे सत्तमा आहार करता है, उन को खल रसपने परिणमाता है व शरीर उत्पन्न करता है ? अहो गौतम ! कितनेक जीव वहां रहे हुवे आहार करते हैं, उसे खल रसपने परिणमाते हैं, व शरीर बांधते हैं. और कितनेक जीव उस नरकावास से अथवा मारणान्तिक समुद्धान से पीछे फीरते हैं और जहां अपने शरीर हैं वहां आते हैं. आकर दूसरी घक्त मारणान्तिक समुद्धात से मरकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नाकावासे में से किसी नरकावास में उत्पन्न होते हैं, फीर आहार करते हैं, खल रसपने परिणमाते है। छठा शतकका छठा उद्दशा भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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