________________
८१६
शब्दार्थ 4जा. यावत् क० कितने भं• भगवन् अ० अनुत्तर विमान प० कहे गो गौतम ५० पांच अ० अनुत्तर
विमान 40 कहे तं. वह ज० यथा वि. विजय जा० यावत् स० सर्वार्थसिद्ध ॥१॥ जी0 जीव भं० भगवन् मा० पारणान्तिक स० समुद्घात से स. मरकर जे. जो भ०' योग्य इ० इस २० रत्नप्रभा पु० पृथ्वी में ती०तीस नि. नरकावास में स० लक्ष अ० अन्यतर नि. नरकावास में नेनारकीपने उ उत्पन्न होने को से० अथ भ. भगवन् त वहां आ० आहारकरे ५० परिणमावे स० शरीर बं० बांधे गो०
पण्णत्ता? गोयमा! पंच अणुत्तर विमाणा पण्णत्ता,तंजहा विजए जाव सव्वट्ठसिद्धे ॥१॥ जीवेणं भंते ! मारणंतिय समुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे भावए इमीसे रयणप्पभाए पुढवाए तीसाए निरयावास सयसहस्सेमु अन्नयरंसि निरयावासांस नेर- . इयत्ताए उववजित्तए, सेणं भंते ! तत्थगए चेव आहारज्जवा परिणामेजवा सरीरंवा
बंधेजा ? गोयमा ! अत्थेगइए तत्थगएचेव आहारेजवा परिणामेजवा सरीरंवा भावार्थ विमान की पृच्छा करते हैं. अहो भगवन् ! अनुत्तर विमान कितने कहे हैं ? अहो गौतम ! अनुत्तर वि
मान पांच कहे हैं उन के नाम ? विजय २ वैजयंत ३ जयंत ४ अपराजित ५ सर्वार्थ सिद्ध ॥ १॥ अहो
भगवन ! मारगान्तिक समुद्धातसे मरकरके जो जीव इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तास लाख नरकावामे में * से किसी नरकावास में नारकीपने उत्पन्न होने योग्य होवे, वह जीव क्या वहां गया हुवा वहां के पुद्गलों का
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*