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(भगवती) सूत्र 48 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (
छ. छठा स० शतक का ५० पांचवा उ० उद्देशा स० समाप्त ॥६॥५॥
का कितनी भं० भगवन् पु०' पृथ्वी प० प्ररूपी गो० गौतम स० सात पु० पृथ्वीयों प. प्ररूपी Vतं. वह ज० यथा २० रत्नप्रभा जा० यावत् त. तमतमप्रभा र० रत्नप्रभा के आ० आवास भा०कहना
जा. यावत् अ० नीचे स० सातवी ए. ऐसे जे. जो० ज० जितने आ० आवास ते. वे भा० कहना ___ भंते भंतेत्ति ॥ छट्ठसए पंचमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ६ ॥ ५॥ * *
कइणं भते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-रयणप्पभा जाव तमतमा, रयणप्पभादीणं आवासा भाणियव्वा जाव अहे सत्त
माए एवं जे जत्तिया आवासा ते भाणियन्वा जाव कइणं भंते ! अणुत्तर विमाणा है पांचवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥६॥७॥ +
पांचवे उद्देशे में विमानादिकों की वक्तव्यता कही, और इस में भी इस का आधिकार कहते हैं. है भगवन् ! पृथ्वी कितनी कहीं ? अहो गौतम ! पृथ्वी सात कही. उन के नाम १ रत्नप्रभा २ शर्कर 90
प्रभा ३ बालु प्रभा ४ पंकप्रभा ५ धूम्रप्रभा ६ तमप्रभा और ७ तमतपप्रभा,रत्न प्रभा में ३० लाख आवास, शर्कर प्रश में २५ लाख, बालुप्रभा में १५ लाख, पंकप्रभा में १० लाख, धूम्रप्रभा में तीन लाख, तमप्रभा में पांच कमएक लाख, और तमतमप्रभा में मात्र पांच आवास कहे हैं. ऐसेही अनुत्तर विमान तक जानना. अनुत्तर,
छठा शतकका छठा उद्देशा -
भामार्थ
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