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शब्दार्थ | क० कहां भं० भगवन् रि० रिष्ट विमान ५० कहा गो० गौतम ब. बहुत मध्य के दे० देशमें |
! ॥ २७ ॥ ए० इन अ० आठ लो० लोकान्तिक वि० विमान में अ० आठ लो० लोकान्तिक दे. देव प.00 | रहते हैं सा०सारस्वत आ० आदित्य ववन्हि व वरुण गगर्दतोय त० तुषित अ० अव्यावाध अ० आगच ।
रि० रिष्ट ॥ २८ ॥ क. कहां भ० भगवन् सा० सारस्वत दे० देव ५० रहते हैं गो गौतम अ० अचि ०७| है पुरच्छिमेणं एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव कहिणं भंते ! रिदृविमाणे पण्णत्ते? गोयमा !
बहुमज्झ देसभागे॥ २७ ॥ एएसुणं अट्ठसु लोगंतिय विमाणेसु अट्ठविहा लोगतिया देवा परिवसंति तंजहा-सारस्सय माइचा, वण्ही वरुणाय गहतोयाय ॥ तुसिया अव्वाबाहा
अग्गिच्चा चेव रिट्ठाय ॥ १ ॥ २८ ॥ कहिणं भंते ! सारस्सया देवा परिवसंति ? भावार्थ अर्थी विमान कहां कहा है ? अहो गौतम ! अर्थी विमान ईशान कौन में कहा है. अम्माली पूर्व में, 3 |
वैरोचन अग्निकौन में, प्रभंकर दक्षिण में, चंद्राभ नैऋसकौन में, सूर्याभ पश्चिम में, शुक्राभ वायव्य में,सुमतिष्ठाभ उत्तर में और मध्य में रिष्ठाभ ॥ २७ ॥ इन आठ लोकान्तिक विमान में आठ प्रकार के लोकाॐन्तिक देव रहते हैं. १ सारस्वत, २ आदित्य ३ वन्हि ४ वरुण, ५ गर्दतोय ६ तुषित ७ अव्याबाट ११८ अगिच्च और ९ रिष्ठ ॥ २८ ॥ अर्ची विमान में सारस्वत देव रहते हैं, अर्चिमाली में आदित्य, वैरोचन है।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
288003 छठा शतकका पांचवा उद्देशा 8