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18 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
*गौतम अ० अमेकवार अ० अथवा अ० अनैतवार नो० नहीं बा० बादर आ. अप्कायपने बा० बादर
अग्निकायपने बा० बादर वायकायपने ॥ २५॥ इ० इन अ० आठ क. कृष्णराजियों में अ० आठ उ० आंतरे में अ० आठ लो. लोकान्तिक वि० विमान प० कहे अ० अर्ची अ० आँचमाली व० वैरोचन प०११ प्रभंकर चं० चद्राभ मू० सूर्याभ सु० शुक्राम सु० सुप्रतिष्ठाभ म. मध्य में रि०रिष्टाभ ॥ २६ ॥ क. कहां अ० अर्ची वि० विमान प० प्ररूपा गो. गौतम उ० ईशान में एक ऐसे ही प०परिपाटी से ने० जानना
क्खुत्तो नो चेवणं बायर आउकाइयत्ताए, बादर अगणिकाइयत्ताएवा, बादरवप्फइ काइयत्ताएवा ॥ २५ ॥ एयासिणं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु उवासंतरेसु अट्ठलोगंतिय विमाणा पण्णत्ता, तंजहा अच्ची, अच्चीमाली, वइरोयणे, पभंकरे, चंदाभे, सूराभे, सुक्काभे, सुपइट्ठाभे, मझे रिट्ठाभे ॥ २६ ॥ कहिणं भंते ! अचिविमाणे पण्णत्ते ?
गोयमा ! उत्तरपुरच्छिमेणं ॥ कहिणं भंते ! अच्चिमाली विमाणे पण्णत्ते ? गोयमा! . जीव व सत्व क्या पहिले उत्पन्न हुए ? हां गौतम ! पहिले अनेक बार व अनंत वार उत्पन्न हुवे परंतु बादर अपकाय, आग्नकाय व वनस्पति कायपने उत्पन्न नहीं हुवे हैं ॥ २५॥ इन आठ कृष्णराजियों के आठ आंतरे कहे हैं. उन आठ आंतरे में लोकान्तिक देव के आठ विमान कहे हैं:-अर्ची, अर्थी
, वैरोचन, प्रभंकर, चंद्राभ, मूर्याभ, शुक्राभ, सुप्रतिष्ठाभ और मध्य में रिष्टाभ ॥ २६ ॥ अहो भगवन् !
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *