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1 कृष्णराजियों में उ० बादर व० मेघ सं० संस्वेद हं. हां ० है तं० उसे भ० भगवन किं. देव गो०१ To गौतम देव प० करते हैं नो० नहीं अ० असुर नो० नहीं ना० नाग अ० है ० भगवन् क. कृष्णरा
जियों में ब० बादर थ० गर्नना ज० जैसे उ० बडे त• तैसे ॥ ११ ।। अ० है भं० भगवन् क० कृष्ण राजियों में बा० धादर आ० अप्काय वा० बादर अ० अग्निकाय बा० बादर व० वनस्पतिकाय णो०१६ |
॥१८॥ आत्थिणं भंते ! कण्हराईसु उरालाललाहया संसेयंति ३ ? हंता अस्थि ॥ तं भंते ! किं देवो ३ ? गोयमा ! देवो पकरेइ नो असुरो नो नाओ । अत्थिणं भंते ! कण्हराईसु बादरे थाणियसद्दे २ ? जहा उराला तहा ॥१९॥ आत्थिणं भंते ! कण्ह
राईसु बायरे आउकाए बायरे अगणिकाए,बायरेवणप्फइकाए ? णोइणढे सम?॥णण्णभावार्थ
हां गौतम ! बडे २ मेघ रहे हुवे हैं. अहो भगवन् ! उन्हे क्या देव करते हैं, असुर करते हैं या नाग करते हैं ? अहो गौतम ! उन मेघको देव बनाते हैं परंतु असुर व नाग नहीं बनाते हैं. अहो भगवन् !
कृष्णराजियों में क्या बादर गर्जना व बादर विद्युत् है ? हां गौतम ! उस में बादर गर्जना व बादर ॐ विद्युत् है, और उन्हे देव बनाते हैं. परंतु असुर व नाग जाति के देव नहीं बनाते हैं. क्योंकि उन का वहां
गमन नहीं है ॥ १९ ॥ अहो भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में बादर अप्काय, अग्निकाय व वनस्पति
48 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 882
छा शतक का पांचवा उद्देशा 988