________________
wwwwwwwwwww
शब्दार्थ 43 उनर द० दक्षिण की बा० बाहिर की क० कृष्णराजी तं० तीनकौने वाली दो० दो पु. पूर्व 341
० १५० पश्चिम की अ० 'आभ्यंतर क० कृष्णराजी च० चौरस ॥ १५ ॥क० कृष्णराजियों भं. भगवन् 180 के० कितनी आ० लम्बाइ में के कितनी वि० चौडाइ में के० कितनी प० परिधि में गो० गौतम, अ. असंख्यात जो० योजन सहस्र आ० लम्बाइ में सं० संख्यात जो० योजन सहस्र वि० चौडाइ में भं० अंसख्यात जो योजनसहस्र प० परिधिमें प० कही ॥१६॥ क• कृष्णराजियों में भगवन् के० कितनी साओ, ॥ पुवावरा छलंसा, तंसापुण दाहणुत्तराबज्झा ॥ अवसेसा चउरंसा, सव्वाविय कण्हराईओ ॥ १ ॥ १५ ॥ कण्हराईओणं भंते ! केवइयं आयामेणं केवइयं विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ ? गोयमा ! असंखेज्जाई जोयण सहस्साई आयामेणं, संखेज्जाइं जोयण सहस्साई विक्खंभेणं,असंखजाई जोयणसहस्साई
परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ ॥१६॥ कण्हर्राईओणं भंते ! के महालियाओ पण्णत्ताओ ? भावार्थ. बाह्य कृष्णराजी को स्पर्शकर रही है. पूर्व पश्चिम की बाह्य दो कृष्णराजीयों छ कौनेवाली हैं, उत्तर दक्षिण
की बाहिर की दो कृष्णराजीयों त्रिकोनाकार हैं, पूर्व पश्चिम की आभ्यंतर दो कृष्णराजीयों चौरस हैं,00 70 वैसेही उत्तर दक्षिण की दोनों आभ्यंतर कृष्णराजीयों चौरस हैं॥१५॥ अहो भगवन् ! कृष्णराजीयों लम्बाई
चौडाई व परिधि में कितनी कहींहैं? अहो गौतम कृष्णराजीयों असंख्यात योजनकी लम्बी, संख्यात योजन सहस्र की चौडी, व असंख्यात योजन सहस्र की परिधिवाली हैं ॥६॥ अहो भगवन् ! कृष्णराजीयों
~
48-49 पंचमांग विवाह पण्पत्ति ( भवगती) सूत्र
छठा शतक का पांचवा उद्देशा 8-SP