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शब्दार्थ उ• उत्पन्न पूर्व हं हां गो० गौतम . अनेक बार अ० अथवा अ. अनंतयार णो नहीं बावादर
५० पृथ्वी कायपने बा० बादर अग्निकायपने ॥ १४ ॥क० कितमी भं० भगवन् क. कृष्णराजियों प०१00| 0७ प्ररूपी गो गौतम अ० आठ क० कृष्णराजियों ५० प्ररूपी क कहां भ० भगवन ए. यह अ० आठ
क. कृष्णराजियों प० प्ररूपी गो गोतम उ ऊपर स. सनत्कुमार मा० माहेन्द्र क. देवलोक में हि० नीचे बं० ब्रह्मलोक क० देवलोक में रि० रिष्ट वि० विमान ५० प्रस्तर ए. यहां अ० अखाडा के सं०
णो चेवणं बादर पुढविकाइयत्ताए, बादर अगणिकाइयत्ताए ॥ १४ ॥ कइणं भंते ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ कहिणं भंते ! एया अट्ट कण्हराईओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! उप्पिं सणंकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं हिट्टि बंभलोए कप्पे रिट्टे विमाणे पत्थडे एत्थणे अक्खाडग समचउरंस संठाण संठियाओ अट्टराईओ पण्णत्ताओ, तंजहा पुरच्छिमेणं दो,
पच्चत्थिमणं दो, दाहिणणं दो, उत्तरेणं दो, पुरच्छिमभंतरा कण्हराई दाहिणं बाहिरं अनंत वार उत्पन्न हुए, परंतु बादर पृथ्वोकाय व बादर अनिकायपने नहीं उत्पन्न हुए, क्योंकि उन की उत्पत्ति का वहां अभाव है ॥ १४ ॥ तमस्काय के समान रंगवाली कृष्णराजी है इस से कृष्णराजी का प्रश्न फूछते हैं. अहो भगवन् ! कृष्णरानी कितनी कही? अहो गौतम ! कृष्णराजी आठ कहीं अहो भगवन् !
488 पंचमांम विवाह पण्णत्ति ( भागाती) मूत्र 889
छठा शतकका पांचवा उद्देशा 988