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शब्दार्थ
सूत्र
तारारूप नो नहीं इ० यह अर्थ स. समर्थ ५० चारो तरफ अ० है भ० भगवन् त० तपस्काय में चं० चंद्रकी भा० कान्ति सू० सूर्य की भा० कान्ति णो० नहीं इ० यह अर्थ स० समर्थ दु० दुषनीक पु० पुनः सा. वह ॥ १० ॥ तक तमस्काय भ० भगवन् के० कैसा 40 वर्ण से गो० गौतम का० काली का० काली कान्ति गं० गंभीर लो० रोमहर्ष की उत्पति भी० रौद्र उ० त्रास उत्पन्न करने वाली प० परम कि.
रूवा ? णो इणटे समटे पलियस्सओ पुण अस्थि । अत्थिणं भंते ! तमुकाए चंदाभाइवा, सूराभाइवा ? णोइण? समटे का दूसणिया पुण सा ॥ १०॥ तमुकाएणं
भेते ! केरिसए वण्णेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! कालो, कालोभासे, गंभरिलोमहपृथ्वीकाय व चादर अनिकाय नहीं है. मात्र बादर पृथ्वीकाय के जीव आयुष्य पूर्ण होने पर तमस्काय में से जाते हैं. बादर अनिकाय मात्र मनुष्य लोक में है ॥ ९॥ अहो भगवन् ! समस्काय में चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र व तारे रहे हुवे हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अर्थात् तमस्काय में ज्योतिष. चक्र नहीं है परंतु उस की आसपास रहा हुवा है. अहो भगवन् ! तमस्काय में क्या चंद्र व सूर्य की 13 प्रभा है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है क्योंकि अढाइद्वीप की बाहिर चंद्र सूर्य स्थिर है।
और उन पुद्गलों को चंद्र सूर्य की प्रभा दूषित होती है ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! तमस्काय का वर्ण कौनसा कहा ? अहो गौतम ! तमस्काय का वर्ण काला, काली प्रभावाला, गंभीररोमकम्पहर्षउत्पन्न का
48 अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी बालाप्रसादजी
भावार्थ