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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
* पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
करते हैं ना० नाग प० करते हैं गो० गौतम दे० देव करते हैं अ० असुर करते हैं ना० नाग करते ॥ ७ ॥ अ० है मं० भगवन् त० तमस्काय में बा० बादर थ० स्थनित स० शब्द वा० बादर वि० विद्युत् ६० हां अ० है ॥ ८ ॥ अ० है ० भगवन् त० तमस्काय बा० बादर पु० पृथ्वी काय बा० बादर अ० अग्निकाय गो० नहीं इ० यह अर्थ स० समर्थ न० नहीं अ० अन्य वि० विग्रहगति ॥ ९ ॥ अ० है ० भगवन् त० तमस्काय चं० चंद्रमा सू० सूर्य ग० ग्रह ग० समुह ण० नक्षत्र ता० नागोवि परेइ ॥ ७ ॥ अस्थि भंते ! तमुकाए बादरे थणियस बादरविज्जुयाए ? हंता अत्थि, तं भते ! किं देवो पकरेइ ? तिणिवि पकरे इ ॥ अत्थिणं भते ! तमुका बादरे पुढवीका बादरे अगणिकाए ? णोइणट्ठे समट्ठे || णण्णत्थ विग्गहगइसमावब्णाएणं ॥९॥ अत्थिणं भंते! तमुकाए चंदिम सूरिय गहगणनक्खत्त तारा
व नाग करते हैं. ? अहो गौतम ! देव, असुर व नाग तीनों ही तमस्काय में क्या बादर शब्द व वादर विद्युत होते हैं ? हां गौतम ! शब्द होते हैं, अहो भगवन् ! उसे क्या देव, असुर व नाग के देवों करते हैं ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! तमस्काय में बादर) अहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, अर्थात् उस में बादर
वह वर्षा देव करते हैं, असुर करते हैं वर्षा करते हैं || ७ || अहो भगवन् बादर विद्युत् व वादर
!
तमस्काय
करते हैं ? अहो गौतम ! तीनों जाति (पथ्वीकाय व बादर ते काय क्या है ?
छठ्ठा शतकका पांचवा उद्देशा
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