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________________ | ७९८ शब्दार्थ उल्लंघे अ० कितनेक नो० नहीं वा० उल्लंथे ए. यह म० ऊचाइ गो• गातम त० तमस्काय प० प्ररूपी PF ॥५॥ अ० है भं० भगवन त० तमस्काय गे० गृह गे• दुकान नो० नहीं इ० यह अ० अर्थ स. योग्य 14 अ. है भं० भगवन् त० तमस्काय गा० ग्राम जा० यावत् सं० सन्निवेश नो० नहीं इ० यह अर्थ स०१ सपर्थ ॥ ६॥ अ० है भ० भगवन् त० तमस्काय उ० प्रधान व० मेघ से० झरे स० उत्पन्न होवे वा० वर्षा वा० वर्षावे हं० हां अ० है तं० उसे भ० भगवन किं० क्या दे देव प० करते है अ० असुर प०१ कायं वीईवएजा अत्थेगइएतमुकायं नो वीइवएज्जा, ए महालएणं गोयमा! तमुकाएपण्णत्ते ॥५॥अत्थिणं भंते! तमुकाए गेहाइवा गेहवणाइवा? णोइणट्टे समढे॥अत्थिणं मंते! तमुकाए गामाइवा जाव सन्निवेसाइवा ? णो इणटे समटे ॥ ६ ॥ अत्थिणं भंते ! तमुकाए उराला वलाहया सेसंयंति समुच्छंति वासं वासंति ? हंता अत्थि, तं भंते ! किं देवो पकरेइ, असुरो पकरेइ, नागो पकरेइ ? गोयमा ! देवोवि पकरेइ असुरोवि पकरेइ, JE योजनवाली तमस्काय को उत्तीर्ण नहीं हो सकते हैं. अहो गौतम ! तमस्काय इतनी बडी कही है ॥ ५॥ अहो भगवन् ! क्या तमस्काय में गृह, दुकान, ग्राम, या नगर के आकार हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है ॥ ६॥ अहो भगवन ! तमस्काय में बहुत बडे मेघ स्नेह उत्पन्न करते हैं, पुद्गलों 10 उत्पन्न होते हैं. और वर्षा वर्षती है ? हां गौतम ! याक्त् वर्षा वर्षती है. अहो भगवन् ! क्य * अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी - *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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