________________
शब्दार्थ। स० सब दी० द्वाप स. समुद्र की स० सत्र आभ्यतर जा. यावत् १० परिधि में १० कहा दे० देश
७०म० महार्दिक जा. यावत् म. महानुभाग इ० अभी ति० पेसा क० करके के० में पूर्ण ज. जम्बूद्वीप ती.
तीन अ० चपुष्टिका नि० कीहुई ति० एक्कीसवार अ० परिभ्रमण करके ह• शीघ्र आ० आत्रे से उस दे० देवता की उ० उत्कृष्ट तु० त्वरित जा. यावत् दे. देवगति से वी० जातेहुए जा० यावत् ए. एक अ.दिन दु० दो दिन ति तीन दिन उ० उत्कृष्ट छ छमास वी० जावे अ.कितनेक ततमस्काय वि.
समुद्दाणं सव्वन्भंतराए जाव परिक्खेवणं पण्णत्ते, देवेणं महिठ्ठीए जाव महाणुभावे इणामेव २ त्तिकटु केवलकप्पं जबुद्दीवं दीवं तीहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तखत्तो अणुपरियाहत्ताणं हब्वमागच्छेजा, सेणं देवत्ताए उकिट्टाए, तुरियाए जाय देवगईए
बीईवयमाणे जाव एकाहंवा दुयाहं तियाहंवा उक्कोसेणं छम्मासे वीईवएजा अत्थेगइए तमु. भावार्य द्वीप समुद्र में यह जम्बूदीप बहुत छोटा, व आभ्यंतर है इस की पगिध तीन लाख सोलह हजार दोसो
अठाइस योजन से कुछ कम की है. इस को कोई महर्दिक यावत् महानुभाग देव तीन चपटी बजावे इतने काल में इलावीस वक्त फीरे ऐसी उत्कृष्ट, त्वरित यावत देवगति से एक दिन, दो दिन, तीन दिन याक्त छ मास पर्यंत फीरे तब संख्यात योजन के विस्तारवाली तमस्काय को उत्तीर्ण होजाते हैं परंतु असंख्यात
पंचमांग विवाह पण्णन्ति ( भगवती)
384हा शतक का पवित्रा उद्देशा-
8
82
-