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मन्दार्थ
Anandane
42 अमुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
दोपकार की प० प्ररूपी २० वह ज. यथा सं० संख्यात विस्तार काली . असंख्यात विस्तार वाली तः उस में जे० जो सं० संख्यात विस्तार वाली से वह सं० संख्यात जो० योजन स. सहस्त्र वि० चौडाइ से अ० असंख्यात जो० योजन सहस्र ५० परिधि से त. उस में जे० जो अ० असंख्यात वि०विस्तार वाली अ. असंख्यात जो० योजन स. सहस्त्र वि० चौडाइ में अ. असंख्यात जो० योजन सहस्र प. परिधि में ॥४॥त. तमस्काय भं. भगवन् के० कितनी मा बडी अ० इस जं०जम्बूदी
जे से सखेजवित्थडे सेणं संखजाइ जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, असंखजाई जो. यणसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते तत्थणं जे से असंखजवित्थडे सेणं असंखेजाइं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं असंखजाई जोयण सहस्साई परिक्खेवणं प०॥४॥
तमुकाएणं भंते ! केमहालए पण्णत्ते ? गोयमा ! अयणं जंबूद्दीने हीवे सव्व दीव स्काय का विस्तार दो प्रकार का है। संख्यात योजन का विस्तार व २असंख्यात योजन का विस्तार. जहां संख्यात योजन का विस्तार है वहां उस की चौडाइ संख्यात सहस्र योजन की है और परिधि असंख्यात सहस्रयोजन की है. जहां असंख्यात योजन का विस्तार है वहां असंख्यात योजन महस्र की चौडाइ है: असंख्यात योजन सहस्त्र की परिधि है॥४॥ अहो भगवन् ! तमस्काय कितनी बडी कही? अहो गौतम
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी चालाप्रसादजी *
भावार्थ