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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
+9 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
किं० क्या इ०यह भं०भगवन् त० तमस्काय प०कहाती है किं० क्या पु० पृथ्वी त० तमस्काय आ० अप् त० तमस्काय गो० गौतम नो० नहीं पु० पृथ्वी त ० तमस्काय प० कहाती है आ० अप् त तमस्काय से० अथ के ० अवसेसा अपञ्चक्खाणनिवत्तियाउया ॥ १० ॥ गाहा-पच्चक्खाणं जाणइ, कुव्वंति तेणेव आउनिव्वत्ती ॥ सपएसुद्देसंमिय, एमेए दंडगा चउरो ॥ भंतेति ॥ छट्ठ सयस्स चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ६ ॥ ४ ॥ किमियं भंते ! तमुकाएति पवृच्चइ, किं पुढवी तमुकाएत्ति, पवुच्चइ, आउतमुकाएत्ति पgs, ? गोयमा ! नो पुढवि तमुकाएत्ति पवच्च३, आउतमुकाएत्ति पवुच्चइ, से
१ ॥ सेवंभंते
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{ प्रत्याख्याना प्रत्याख्यान से आयुष्य का बंध करते हैं ? अहो गौतम ! जीव प्रत्याख्यानादि तीनों प्रकार { से वैमानिक का आयुबंध करते हैं शेष अप्रत्याख्यान से आयुर्वेध करते हैं ॥ ८ ॥ प्रत्याख्यानी { हैं, प्रत्याख्यान जानते हैं, प्रत्याख्यान करते हैं, व प्रत्याख्यान से आयुर्वेध करते हैं यह चार दंडक (उक्त प्रदेशात्मक उद्देशे में विशेष कहे हैं. यह छठ्ठा शतक का चौथा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ६ ॥ ४ ॥
चौथे उद्देशे में जींव के समदेशपने का कथना किया. पाचवे उद्देशे में तमस्कायं का स्वरूप कहते हैं. तमिस्र पुलों की राशि सो तमस्काय. अहो भगवन् ! क्या पृथ्वी को
तमस्काय कहते हैं, या पानीको
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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