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________________ ago पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र पच्चक्खाणापच्चक्वाणीवि, मणयातिण्णिवि, सेसाजहा नेरइया ॥ ७ ॥ जीवाणं भंते ! किं पञ्चक्खाणं जाणंति, अपच्चक्खाणं जाणंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं जाणंति ? गोयमा ! जे पंचिंदिया तेतिण्णिवि जाणंति अवसेसा न पच्चक्खाणं जाणंति ॥८॥ जीवाणं भंते ! किं पच्चक्खाणं कुव्वंति अपच्चक्खाणं कुव्वंति पच्चक्खाणापच्चक्खाणं कव्वंति ? जहा ओहिया तहा कव्वणा ॥ ९॥ जीवाणं भंते ! किं पच्चक्खाणनिवत्तियाउया, अपच्चक्खाण णिवत्तियाउया पच्चक्खाणापच्चक्खाण णिवत्तियाउया ? गोयमा ! जीवाय वेमाणियाय पच्चक्खाण निवत्तियाउया तिण्णिवि, एकेन्द्रिय, तीन विकलेन्द्रिय, वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक अपत्याख्यानी हैं. तिर्यंच पंचेन्द्रिय अप्रत्याख्यानी व प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं मनुष्य में तीनों भांगे पाते हैं ॥ ७॥ अहो भगवन् ! क्या a जीव प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, व प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान जानते हैं ? अहो गौतम ! जो पंचेन्द्रिय हैं वे तीनों जानते हैं और शेष जीवों प्रत्याख्यान नहीं जानते हैं ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! क्या जीवga प्रत्याख्यानादि करते हैं ? अहो गौतम ! जैसे औधिक सूत्र कहा वैसे कहना. अर्थात् पंचेन्द्रिय तिर्यंच, व मनुष्य छोडकर सब अप्रत्याख्यानी हैं. मनुष्य तीनों करते हैं और तिर्यंच पंचेन्द्रिय अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यानापत्याख्यान करते हैं ॥९॥ अहो भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यान से, अत्याख्यान से या 2143 छठा शतक का चौथा उद्देशा भावार्थ . .
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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