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मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
अपजत्तीए, इंदिय अपज्जत्तीए, आणापाण अपजत्तीए जीवे एगिदियवज्जो तियभंगो नेरइयदेवमणुएहिं छब्भंगा, भासामणअपजत्तीए जीवादिओ तियभंगो, णेरइयदेवमणुएहिं छब्भंगा । सपएसाहारग भविय, सण्णिलेलादिट्टि संजयकसाए ॥ नाणे जोगुवयोगे वेएयसरीर पज्जत्ती॥२॥६॥जीवाणं भंते! किं पच्चक्खाणी अपच्चक्खाणी पच्चक्खाणा पच्चक्खाणी ? गोयमा ! जीवा पच्चक्खाणीवि, अपच्चक्खाणीवि, पच्चक्खाणा पच्चक्खाणीवि सव्व जीवाणं एवं पुच्छा ? गोयमा ! नेरइया अपच्चक्खाणी जाव चरिंदिय
सेसा दो पडिसेहेयव्वा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणीवि, मनुष्य में छ भांगे. भाषामन की अपर्याप्ति में जीवादि पद में तीन भांगे, नारकी, देव व मनुष्य में छ भांगे. सिद्ध भगवन्त पर्याप्तअपर्याप्त में दोनों नहीं है. अब इनसब का संग्रह गाथा में कहते हैं. २ सप्रदेशी, २ आहारक,३ भव्य ४ संज्ञी, ५ लेश्या, ६ दृष्टि, ७ संयति, ८ कषाय, ९ ज्ञान, १० योग, १२ उपयोग, १२ वेद, १३ शरीर, १४ पर्याप्तिअपर्याप्ति ॥ ६!! अहो भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यानी (मर्व विरति) अप्रत्याख्यानी (अविरति) व प्रत्याख्यानापत्याख्यानी (देश विरति) हैं ? अहो गौतम ! जीव सर्व विरति, अविरति व देश विरति हैं. अहो भगवन् ! नरकादि चौवीस दंडक के जीव प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी व प्रत्याख्याना प्रत्याख्यानी हैं ? अहो गौतम ! नारकी, दशभुवनपति पांच
* प्रकाशक-रामावहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ