________________
तेउलेस्साए जीवादियओ तियभंगो णवरं पुढविकाइएसु आउवणप्फईसु छन्भंगो,
भावार्थ
488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र <2882
के दूसरे दंडक में जीवादि पद में तीन भांगे पाते हैं. पृथ्वी, अप, व वनस्पति में पूर्वोक्त छ भांगे कहना l
७८५ नरक, तेउ, वायु, विकलेन्द्रिय व सिद्ध में तेजोलेश्या नहीं होती है इसलिये उन को यहां ग्रहण करना नहीं. पद्म व शुक्ल लेश्या में जीव, तिर्यंचपंचेन्द्रिय, मनुष्य व वैमानिक यह चार पद ही पाते हैं इन में पूर्वोक्त तीन भांगे होते हैं. अलेशी के दोनों दंडक में जीव, मनुष्य व सिद्ध ये तीन ही पद पाते हैं. जीव व सिद्ध पद में तीन भांगे व मनुष्य पद में छ भांगे पाते हैं. समदृष्टी के एक जीव बहुत जीव ऐसे दो दंडक. इस के दूसरे दंडक जीवादि में तीन भांगे. विकलेन्द्रिय में छ भांगे क्यों कि विकलेन्द्रिय में साश्चादान सम्यगर दृष्टिवाले कोई पहिले उत्पन्न होते हैं इसलिये सप्रदेश, अप्रदेशपने एकत्व बहुत का संभव होता है. एकेन्द्रिय में समदृष्टी नहीं होने से नहीं लिये गये हैं. मिथ्यादृष्टि के दूसरे दंडक के जीव पद में तीन भांग एकंन्द्रिय में एक भांगा. मिश्रदृष्टी में सब दंडक में छ भांगे. इस में एकेन्द्रिय व सिद्ध नहीं हैं. संयति के दूसरे दंडक में जीवादि पद में तीन भांगे. इस में जीव व मनुष्य ऐसे दो ही पद ग्रहण करना. असंयति के दूसरे दंडक में जीवादि पद में तीन मांगे हैं, एकेन्द्रिय में एक भांगा. संयतासयति के दूसरे दंडक में जीवादि में तीन भांगे, इस में जीव, तिर्यंच पंचेन्द्रिय व मनुष्य यह तीन रद कहना. नोसंयति, नोअसंयति नासंस्तारयति में दूसरे दंडक में जीव व सिद्ध ऐसे दो पद होते हैं. उन में तीन भांगे पाते हैं. सकषायी ।
4888 छठा शतकका चौथा
-
-