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________________ भावार्थ मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + 3 ॥५॥ आहारगाणं जीवेगिदियवज्जो तिय भंगो, अणाहारगाणं जीवेगिदियवजा छन्भंगा . एवं भाणियन्वा, सपएसावा, अपएसावा अहवा सपएसेय अपएसेय, अहवा सपएसेय । आहारक जीव सप्रदेशी है या अप्रदेशी है ? अहो गौतम ! आहारक जीव क्वचित् सप्रदेशी है व क्वचित् अप्रदेशी है. क्योंकि विग्रहगति या केवली समुद्घात में जीव अनाहारक बनकर जब आहारक होता है तब पहिले समय में अप्रदेशी होता है और दूसरे समय से सप्रदेशी होता है. यह एकवचन सब सादि भाव में कहना. अनादि भाव में नियमा सप्रदेशी रहते हैं. अहो भगवन् ! बहुत आहारक । सप्रदेशी हैं या अप्रदेशी हैं ? अहो गौतम ! बहुत आहारक जीव सप्रदेशी भी हैं और अप्रदेशी भी हैं क्योंकि बहुत जीव आहारकपने बहुत काल से रहे हुवे हैं इसलिये सप्रदेशी और विग्रह गति अनंतर बहुत जीवों को आहारक बनने में एक समय हुवाहै इसलिये अप्रदेशी जानना. जीवपद व एकेन्द्रिय पद छोडकर आहारक जीवों में तीन भांगे पाते हैं. सिद्ध अनाहारक होने से नहीं ग्रहण किये हैं." विग्रहगति प्रतिपन्न व केवली समुद्धातवाले को दो भांगे पाते हैं सप्रदेशी भी होवे और अप्रदेशी भी होवे. अनाहारकके जीवपद व एकेन्द्रियपद में सप्रदेशी अप्रदेशी का एक ही भांगा पाता है इसलिये इसे छोडकर शेष सब अनाहारक में छ भांगे पाते हैं. इस में दो भांगे बहुवचन आश्रित व चार भांगे एक वचन व बहुवचन के संयोग से होते हैं. १ बहुत सप्रदेशी २ बहुत अप्रदेशी ३ एक सप्रदेशी एक अप्रदेशी ४ | प्रकाशक राजाबहादुर लाला-सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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