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नियमा सपएसा॥३॥ नेरइयाणं भंते! कालादेसेणं किं सपएसा अवएसा?गोयमा! सव्वेवि ताव होज सपएसा, अहवा सपएसाय अपएसेय, अहवा सपएसाय अपएसाय एवं जाव थणियकुमारा ॥ ४ ॥ पुढविकाइयाणं भंते ! किं सपएसा अपएसा ? गोयमा!
सपएसावि अपएसावि, एवं जाव वणप्फइकाइया, सेसा जहा नेरइया तहा सिद्धा . भावार्थ
सप्रदेशी ही हैं क्यों कि सब जीव अनादि हैं ॥३॥ अहो भगवन् ! नरक के बहुत जीव काल आश्री सप्रदेशी हैं या अप्रदेशी हैं ? अहो गौतम ! १ सब जीव सप्रदेशी हैं क्योंकि उत्पात विरह काल पहिले असंख्याते उत्पन्न हुए यह प्रथम भंग. २ पहिले बहुत नारकी उत्पन्न हुवे हैं जिस में एक और उत्पन्न होवे. वह प्रथन समय में उत्पन्न होने से अप्रदेशी है और पहिले उत्पन्न हुए नारकी को उत्पन्न हुए बहुत समय होजाने से सप्रदेशी हैं, इस से बहुत सप्रदेशी व एक अप्रदेशी यह दूसरा भांगा ३ पहिले बहुत जीव उत्पन्न हुए थे जिस में बहुत जीव नविन आकर उत्पन्न हुए इस से बहुत सप्रदेशी व बहुत अप्रदेशी भांगा मीलता है. यों असरकमारादि दश दंडक में तीनों भांगे पाते हैं॥४॥ पचीकायिकादि पांचों }os स्थावर में सप्रदेशी अप्रदेशी दोनों रहें हुचे हैं क्योंकि इस में विरह काल नहीं है. शेष तीन विकले-14
न्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक व सिद्धतक का अधिकार जैसे नरक के सजीवों में तीन भांगे कहे वैसे ही कहना. क्यों कि इस में विरह काल रहा है ॥५॥ अहो भगवन् ! क्या।।
विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 48862
3 छठा शतक का चौथा उद्देशा