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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
अनंत गुने से० वैसे ही मं० भगवन् छ० छठा स० शतक का त० तीसरा उ ० उद्देशा || ६ || ३ | ato सेवं भंते भंतेति ॥ छट्टु सयरस तइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ ६ ॥ ३ ॥
जीवणं भंते ! काला देसेणं किं सपएसे अपएसे ? गोयमा ! नियमा सपएसे ॥ १ ॥ नेरइएणं भंते ? कालादेसेणं किं सपएसे अपएसे ? गोयमा ! सिय सपएसे सिय अपसे, एवं जाव सिद्धे ॥ २ ॥ जीवाणं भंते कालादेसेणं सपएसा अपएसा ? गोयमा ! (१६) सब से थोडे अचरम, चरम जीव अनंत गुने. अहो भगवन आप के वचन सत्य हैं यह छठा शतक का तीसरा उद्देशा पूर्ण हुआ. ॥ ६ ॥ ३ ॥
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तीसरे उद्देश में जीव का अधिकार कहा आगे भी इन का ही विशेष अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! एक जीव काल आश्री समदेशी है या अप्रदेशी है ? अहो गौतम ! एक जीव काल आश्री सप्रदे देशी है, परंतु अप्रदेशी नहीं है क्यों की जीव की स्थिति अनादि अनंत है ॥ १ ॥ { नरक का जीव काल आश्री सप्रदेशी है या अप्रदेशी है ? अहो गौतम ! नरक का क्वचित् समदेशी व अप्रदेशी है. क्योंकि जिन को उत्पन्न हुए एक समय हुवा है वह अप्रदेशी है। और विशेष समय हुवा है वह सप्रदेशी है ऐसे ही सिद्ध तक सब जीव का जानना ॥ २ ॥ वन् ! बहुत जीव क्या काला देशसे सप्रदेशी हैं या अप्रदेशी हैं ? अहो गौतम ! जीव कालादेश से
अहो भग
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अहो भगवन्
जीव कालादेश से
*_प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्याला ताजे
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