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शब्दार्थ अवेदी क० कौन जा. यावत् वि. विशेषाधिक गो. गौतम स० सब से थोडे पु० पुरुषवेदी इ० स्त्रीवेदी |
सं० संख्यात गुने अ० अवेदी अ० अनंत गुने न० नपुंसक वेदी अ० अनंत गुने ए० इन स० सब ५० पदकी अ. अल्पाबहुत्व उ० कहना जा० यावत् स० सब से० थोडे अ० अंचरिम च० चरिम अ०१० १ जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पुरिस वेयगा, इत्थीवेयगा संखेज्जगुम णा, अवेयगा अणंतगुणा, नपुंसग वेयगा अणंतगुणा ॥ एएसिं सव्वेसिं पयाणं
अप्पबहुगाई उच्चारियव्वाइं जाव सवत्थोवा जीवा अचरिमा चरिमा अणंतगुणा ॥ भावार्थ सब से थोडे अवधि दर्शनी, चक्षुदर्शनी असंख्यात गुने, केवल दर्शनी अनंत गुने, अचक्षु दर्शनी अनंत गुने ।
(७) सब से थोडे पर्याप्त, नो पर्याप्त नो अपर्याप्त अनंत गुने अपर्याप्त अनंत गुने (८) सब से थोडे
भाषक, अभाषक अनंत गुने (९) सब से थोडे परित, नो परित नो अपरित अनंत गुने, अपरित अनंत गुने E (१०) सब से थोडे मनःपर्यव ज्ञानी, अवधि ज्ञानी असंख्यात गुने, :मति श्रुति परस्पर तुल्य व विशेषाधिक
केवल ज्ञानी अनंत गुने (११) सब से थोडे विभंग ज्ञानी, मति श्रुत अज्ञानी परस्पर तुल्य अनंत गुने 00 (१२) सब से थोडे मन योगी, वचन योगी असंख्यात गुने, अयोगी अनंत गुने, काया योगी अनंत गुने । (१३) सब से थोडे साकारोपयुक्त, अनाकारोपयुक्त विशेषाधिक (१४) सब से थोडे आहारक अ- नाहारक असंख्यात गुने [१५] सब से थोडे नो सूक्ष्म नो बादर, बादर अनंत गुने, सूक्ष्म असंख्यात गुने,
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
8882 छठा शतकका तीसरा उद्देशा 8%><