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शब्दार्थ न केवल ज्ञानी हे नीचे के च० चार में भ० भजना के० केवली न० नहीं ६० बांधते हैं ॥ १६ ॥ म०
मति अज्ञानी सु० श्रुत अज्ञानी वि० विभंगज्ञानी ॥ १७ ॥ म० मन योगी २० वचन योगी का. काय
केवलनाणी भयणाए ॥ १६ ॥ नाणावरणं किं मति अण्णाणी बंधइ सुयअण्णाणी विभंगनाणी ? गोयमा ! आउगवजाओ सत्तवि बंधइ, आउगं भयणाए ॥ १७ ॥ णाणावरणं किं मणजोगी. बंधइ, वइजोगी बंधइ, कायजोगी, अजोगी बंधइ ? गोयमा ! हेटिला तिणिभयणाए, अजोगी नबंधइ । एवं वेयणिजवजाओ वेयणिज्ज
हेट्ठिल्ला बंधति, अजोगी नबंधइ ॥ १८ ॥ नाणावरणं किं सागारोवउत्ते बंधइ अना भावार्थ कर्मों का जानना. चारों ज्ञान वाले वेदनीय कर्म बांधते हैं परंतु केवलज्ञानवाले वेदनीय
कर्म क्वचित् बांधते हैं व क्वचित् नहीं बांधते हैं ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! क्या मति अज्ञानी श्रुत अज्ञानी व विभंग ज्ञानी ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं ? अहो गौतम ! आयुष्य कर्म छोडकर सातों कर्म तीनों अज्ञान वाले वांधते हैं आयुष्य कर्य की उन में भजना रहती है ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! क्या मनयोगी, वचन योगी, काया योगी व अयोगी ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं ? अहो गौतमः! तीन योग वालों में भजना है और अयोगी नहीं बांधते हैं. ऐसे ही वेदनीय छोडकर शेष सब का जानना. तीन योग वाले वेदनीय बांधते हैं और अयोगी नहीं बांधते हैं ॥ १८ ॥ अहो
1.9 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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