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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
8 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋाजी
* प्रकाशक - राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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१९ ॥ ना० ज्ञानावरणीय किं० क्या स० संज्ञी अ० असंज्ञी नो० नहीं संज्ञी न ० नहीं असंज्ञी वं० बांधता है। ॥ १० ॥ ० ज्ञानावरणीय किं० क्या भ० भवसिद्धिक अ० अभवसिद्धिक नो० नहीं भवसिद्धिक नो० किं सन्नी बंध असनी बंधइ नो सन्नी नो असन्नी बंबइ ? गोपमा ! सन्नी सिय बंध सिय नबंध, असन्नी बंधइ, नो नी नो अग्नी न बंधइ एवं वेयाणिज्जाउगवज्जाओ छकम्मप्पगडीओ । वेयाणजं हेट्ठिला दो बंधेइ, उवरिल्ला भयणाए || आउगं हेट्ठिल्ला दोभयणाए उवरिल्लो न बंधइ ॥ १० ॥ नाणावरणिज्जं करमं किं भवसिद्धिए बधइ अभवसिद्धिए, नो भबसिद्धिए नो अभवसिद्धिए बंधइ ? गोयना ! भवसिद्धिए भयवरगीय कर्म क्या संज्ञी बांधते हैं, असंज्ञी बांधते हैं या नोसज्ञी नोअसंज्ञी बांधते हैं ? अहो गौतम ! संज्ञी ज्ञानावरणीय कर्म क्वचित् बांधते हैं व क्वचित नहीं बांधते हैं, असंज्ञी बांधते हैं, परंतु नो संज्ञी नो असंज्ञी नहीं बांधते हैं. ऐसे ही वेदनीय व आयुष्य कर्म छोडकर शेष सब कर्मों का जानना. वेदनीय कर्प संज्ञी असंज्ञी बांधते हैं परंतु नो संज्ञो नोअसंज्ञी क्वचित् बांधते हैं व क्वचित् नहीं बांधते हैं. आयुष्य कर्म संज्ञी अज्ञी क्वचित् बांधते हैं व काचित् नहीं बांधते हैं परंतु तो संज्ञी नो असंज्ञी आयुष्य कर्म नहीं बांधते {हैं ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! क्या भवसिद्धिक ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं, अभवसिद्धिक बांधते हैं, या naren नो असिद्धिक बांधते हैं ? अहो गौतम ! भवसिद्धिये ज्ञानावरणीय कर्म काचित्
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