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शब्दार्थक कर्म प्रकृतियों ॥७॥मा०शानावरणीय किं. क्या स. संयति बं० बांधता है अ० असंयति बं०१*
०७बांधता है ए० ऐसे सं० संयतासंयति बं० बांधता है नो० नहीं संयती नो० नहीं असंयती नो० नहीं संयता संयती बं० धना है ए० ऐसे आ. आयुष्य वर्जित स० सात आ० आयुष्य है ० नीचे के ति.
नो बंधइ, एवं तिन्निवि भाणियव्वा ॥ नो इत्थी नो पुरिसो नो नपुंसओ न बंधइ ॥ ७ ॥णाणावरणिज णं भंते ! कम्मं किं संजए बंधइ, असंजए बंधइ, एवं संजयासंजए बंधइ, नो संजए नो असंजए नो संजयासंजए बंधइ ? गोयमा ! संजए सियबंधइ सियनोबंधइ, असंजए बंधइ, संजयासंजएवि बंधइ नो संजए
नो असंजए नो संजयासंजए न बंधइ । एवं आउगवज्जाओ सत्तवि, आउगे हे भावार्थ गुणस्थानवाले अवेदी ज्ञानावरणीय का बंध नहीं करते हैं. ऐसे आयुष्य कर्म छोडकर शेष सब कर्मों का
अवेदी सवेदी आश्री जानना. आयुष्य कर्म का बंध तीनों वेदवाले क्वचित् करते हैं व क्वचित् नहीं करते हैं. अवेदी आयुष्य का बंध नहीं करते हैं ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध
क्या संयति करते हैं, असंयति करते हैं, संयतासंयति करते है, व नो संयति नो असंयति नो संयता"संयति ( सिद्ध ) करते हैं ? अहो गौतम ! संयति ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्वचित्र 1 करते हैं व क्वचित् नहीं करते है. असंयति व संयतासंथति ज्ञानावरणीय का बंध निश्चयही करते हैं.
अनुवादक-बालब्रह्मचरिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *